गोधरा काण्ड का षडयंत्र कांग्रेस से ही जुडा है - अरविन्द सिसोदिया

गोधरा काण्ड का षडयंत्र कांग्रेस से जुडा है - अरविन्द सिसोदिया

प्रथम प्रकाशन की तारीख 23/2/11 
अपडेट प्रकाशन की तारीख 7/1/2023
- अरविन्द  सिसोदिया 9414180151
  गोधरा  में जो कांड हुआ था निश्चित रूप से दुखद था .., श्री राम जन्म भूमी ; अयोध्या से कार सेवा कर लौट  रहे स्त्री , बच्चों और पुरुँषों  को ले कर आरही बोगी में पट्रोल डाल कर निर्दयता पूर्वक जिन्दा जला दिया गया कि सामान्यतः शांत रहनें वाले हिन्दू समाज को भी भयंकर गुस्सा आगया और प्रतिक्रिया स्वरूप जो घटित हुआ वह भी दुखद था ..! इंदिराजी की हत्या के बाद भी इसी तरह की प्रतिक्रिया हुई थी ..! यह होना स्वभाविक है ..! हिंषा के बल पर सच का गला ज्यादा समय तक घोंटा नहीं जा सकता ..!! गैर भाजपा दलों नें तब इस महा भयानक षड्यंत्र को भी सिर्फ वोटों की खातिर कांग्रेस के नेत्रतत्व  में मात्र छोटी सी दुर्घटना में बदलनें की हर संभव कोशिस की ...! इस घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप घटे घटनाक्रम को नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा समपन्न अपराध बता कर उसे घेरनें में कोई कसर नहीं छोड़ी गई..!! जब की इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस नेताओं की अगुआई में हुए हिंषक कृत्यों को जायज ठहराया गया और हत्यारों को सजा नहीं हुई ..! ख़ैर अब अदालत ने अपने फैसले में यह स्पष्तः दर्ज किया है की गोधरा में रेल के डिब्बे में आग लगाई गई थी ..! यह पूर्व निर्धारित षड्यंत्र था ..!!   
* अहमदाबाद;२२ फरबरी २०११ 
 गोधरा कांड की सुनवाई कर रही साबरमती विशेष कोर्ट ने 94 आरोपियों में 63 आरोपियों को बरी कर दिया है जबकि 31 आरोपियों को दोषी माना है। 25 फरवरी को सजा का ऐलान किया जाएगा। गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस-6 आग लगानें से 58 लोगों की मौत हो गई थी। गुजरात पुलिस ने अपनी जांच में ट्रेन जलाने की वारदात को आईएसआई की सोची-समझी साजिश करार दी थी। मकसद हिन्दू कारसेवकों की हत्या कर राज्य का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ना था।

लेकिन राजनीति से प्रेरित मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार का यू सी बैनर्जी कमीशन इस नतीजे पर पहुंचा कि गोधरा की घटना महज एक हादसा थी। बैनर्जी कमीशन के मुताबिक जांच एजेंसियों ने गवाहों को काफी टार्चर कर उनके स्टेटमेंट लिए। कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री ने कांड को साजिश बता कर जांच की दिशा पहले ही तय कर दी थी। बाद में पुलिस भी उसी लाइन पर चली।

जबकि गुजरात पुलिस और नानावती कमीशन साजिश की थ्योरी को लेकर जांच कर रही थी। चार्जशीट में 134 आरोपी बनाए गए, जिसमें 16 अब भी फरार हैं। पांच लोगों की हिरासत में ही मौत हो गई। 13 लोग सबूत के अभाव में छोड़ दिए गए जबकि पांच घटना के वक्त नाबालिग थे। अब तक तीन अलग-अलग एजेंसियां इस कांड की जांच कर चुकी हैं। फिलहाल आर के राघवन की अध्यक्षता वाली एसआईटी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस मामले की जांच कर रही है।
गोधरा कांड घटनाक्रम पर एक नजर
दरअसल गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में लगाई गई  आग आजाद हिन्दुस्तान के इतिहास पर काले धब्बे की तरह है। ट्रेन की उस कोच में लगी आग की आंच को पूरे गुजरात ने महसूस किया था। क्रोध  की आग में पूरा गुजरात  झुलस गया था। गोधरा में हुए उस कांड और उसके बाद इसकी जांच में कई अहम मोड़ आए।

27 फरवरी 2002 की सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर अहमदाबाद जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन पर थी। गोधरा कांड की जांच करने वाली एजेंसियों के मुताबिक ट्रेन अहमदाबाद के लिए प्लेटफॉर्म से कुछ ही दूर आगे बढ़ी कि एस 6 बोगी आग की लपटों से घिर गई। इस हादसे में 58 लोगों की जान चली गई। मृतकों में 23 पुरुष, 15 महिलाएं और 20 बच्चे थे।
हादसे की चपेट में जो एस-6 कोच आया, उसमें अयोध्या से कार सेवा कर लोट रहे कारसेवक सवार थे। इसलिए इसे साजिश होने की आशंका हुई । घटना क्रम भी सर्व विदित रहा जिसके कारण इस खबर ने पूरे गुजरात ही नहीं पूरे देश को आंदोलित कर दिया था !  

साल 2002 में ही राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए नानावती आयोग का गठन कर दिया। नानावती आयोग ने 2008 में रिपोर्ट सरकार को सौंपी। कई गैर सरकारी संगठनों ने इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने पर रोक लगाने की मांग की। इस सिलसिले में गुजरात हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की गई। लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया।

इस बीच यूपीए सरकार ने भी वोट बाएँ की खातिर गोधरा कांड की जांच के लिए एक समिति बनाई। ये समिति साल 2004 में बनाई गई। समिति के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस यूसी बनर्जी बनाए गए। इस समिति ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच सरकार ने इस मामले की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने का फैसला किया। ये स्पेशल कोर्ट साबरमती जेल के अंदर ही बना। जून 2009 में स्पेशल कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ। मुकदमे के दौरान 253 गवाहों से पूछताछ की गई और गुजरात पुलिस ने कोर्ट के सामने 1500 से अधिक दस्तावेजी सबूत पेश किए। 94 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए। सितंबर 2010 में स्पेशल कोर्ट में ये सुनवाई पूरी हो गई। आज कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया।
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28 फरवरी 2002 तक, 71 लोग आगजनी, दंगा और लूटपाट के आरोप में गिरफ्तार किये गये थे। 
"1540 अज्ञात लोगों के एक भीड़ ने गोधरा रेलवे स्टेशन के निकट हमला किया"
एफआईआर ने आरोप लगाया कि एक 1540-मजबूत भीड़ ने 27 फरवरी को हमला किया था जब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ने गोधरा स्टेशन छोड़ दिया। गोधरा नगर पालिका के अध्यक्ष और कांग्रेस अल्पसंख्यक सयोजक मोहम्मद हुसैन कलोटा को मार्च में गिरफ्तार किया गया।  आरोप-पत्र प्रथम श्रेणी रेलवे मजिस्ट्रेट पी जोशी से पहले एसआईटी द्वारा दायर की जो 500 से अधिक पृष्ठों की है गया,जिसमें कहा गया है कि 89 लोगों जो साबरमती एक्सप्रेस के एस -6 कोच में मारे गए थे जिनको चारों ओर से 1540 अज्ञात लोगों के एक भीड़ ने गोधरा रेलवे स्टेशन के निकट हमला किया।

https://hi.wikipedia.org/wiki/गोधरा काण्ड
हमले के लीये कथित आयोजकों में से एक को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, सोरीन रॉय ने कहा कि बंदी मुस्लिम कट्टरपंथी समूह हरकत-उल जेहाद-ए-इस्लामी, जिसने कथित तौर पर बांग्लादेश मे प्रवेश करने के लिए मदद की। 17 मार्च 2002, मुख्य संदिग्ध हाजी बिलाल जो एक स्थानीय नगर पार्षद और एक कांग्रेस कार्यकर्ता था,जिसे एक आतंकवादी विरोधी दस्ते द्वारा कब्जे मे कर लिया गया था। एफआईआर ने आरोप लगाया कि एक 1540-मजबूत भीड़ ने 27 फरवरी को हमला किया था जब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ने गोधरा स्टेशन छोड़ दिया। गोधरा नगर पालिका के अध्यक्ष और कांग्रेस अल्पसंख्यक सयोजक मोहम्मद हुसैन कलोटा को मार्च में गिरफ्तार किया गया। अन्य लोगों को गिरफ्तार हुए पार्षद अब्दुल रज़ाक और अब्दुल जामेश शामिल थे।

 78 लोगों पर आगजनी का आरोप लगाया 
आठ अन्य किशोरों, को एक अलग अदालत मे सुनवाई की गई थी। 253 गवाहों सुनवाई के दौरान और वृत्तचित्र सबूतों के साथ 1500 अधिक आइटम अदालत में प्रस्तुत किए गए जांच की गई। 24 जुलाई 2015 को गोधरा मामले मुख्य आरोपी हुसैन सुलेमान मोहम्मद को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से गोधरा अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया। 18 मई 2016 को, एक पहले लापता `घटना के षड्यंत्रकारी ', फारूक भाना, गुजरात आतंकवादी विरोधी दस्ते  द्वारा मुंबई से गिरफ्तार किया गया। 30 जनवरी 2018, याकूब पटालीया को शहर में बी डिवीजन पुलिस की एक टीम द्वारा गोधरा से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन भारत सरकार द्वारा नियुक्त की गई अन्य जाँच कमीशनों ने घटना की असल पर निश्चित रूप से कोई रोशनी नहीं डाल सकी।

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अहमदाबाद। 
एक विशेष द्रुत गति अदालत द्वारा गोधरा मामले में दोषी ठहराए गए 31 लोगों की सूची निम्न प्रकार है।
1. हाजी बिलाल
2. रजाक कुरकुर
3. शौकत पिटादी
4. सलीम जर्दा
5. जाबिर बिनयामिन बेहरा
6. अब्दुल रउफ
7. यूनुस घड़ियाल
8. बिलाल बादाम
9. फारुख गाजी
10. इरफान कलंदर
11. अयूब पठाडिया
12. शोएब बादाम
13. सलमान पीर
14. जम्बूरा कनखट्टा
15. बिलाल टीडो
16. बिरयानी
17. रजाक कुरकुर
18. सादिक बादाम
19. मोहम्मद पोपा
20. रमजानी बोहरा
21. हसन चर्खा
22. मोहम्मद चांद
23. मोहम्मद हनीफ भाना
24. मोहम्मद हसन
25. शौकत बिबिनो
26. सोएब कलंदर पठाडिया
27. सिद्दीक मोरा
28. अब्दुल सत्तार
29. अब्दुल रउफ कमाली
30. इस्माइल सवाली
31. सिराज वाडा
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प्रमुख रूप से घटना क्रम .......
वर्ष 2002 के गोधरा ट्रेन कांड और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगे का घटनाक्रम इस प्रकार है-
- 27 फरवरी, 2002: गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन की एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाये जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी.
 -28 फरवरी से 31 मार्च 2002 :गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गये. मारे गये लोगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे.
- 3 मार्च, 2002: गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किये गये लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटो) लगाया गया.
- 6 मार्च, 2002: गुजरात सरकार ने कमिशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिये एक आयोग की नियुक्ति की.
- 9 मार्च, 2002: पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) लगाया.
- 25 मार्च, 2002: केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटो हटाया गया.
- 27 मार्च, 2002: 54 आरोपियों के खिलाफ पहला पहला आरोप पत्र दाखिल किया गया लेकिन उन पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत आरोप नहीं लगाया गया. (पोटो को उस समय संसद ने पास कर दिया था जिससे वह कानून बन गया)
- 18 फरवरी, 2003: गुजरात में भाजपा सरकार के दुबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया.
- 21 नवंबर, 2003: उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन जलाये जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगा दिया.
- 4 सितंबर, 2004: राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश यू सी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया. इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जांच का काम सौंपा गया.
- 21 सितंबर, 2004: नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया.
- 17 जनवरी, 2005: यू सी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी.
- 16 मई, 2005: पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाये जायें.
- 13 अक्तूबर, 2006: गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यू सी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है क्योंकि नानावती-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है. उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जांच के परिणाम ‘अमान्य’ हैं.
- 26 मार्च, 2008: उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिये विशेष जांच आयोग बनाया.
- 18 सितंबर, 2008: नानावती आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षडयंत्र था और एस-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया.
- 12 फरवरी 2009: उच्च न्यायालय ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता है.
- 20 फरवरी, 2009: गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाये जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी. इस मामले पर सुनवाई अभी भी लंबित है.
- 1 मई, 2009: उच्चतम न्यायालय ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जांच में तेजी आई.
- 1 जून, 2009: गोधरा ट्रेन कांड की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर शुरू हुई.
- 6 मई, 2010: उच्चतम न्यायालय सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े नौ संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका.
- 28 सितंबर, 2010: सुनवाई पूरी हुई लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाये जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया.
- 18 जनवरी, 2011: उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध हटाया.
- 22 फरवरी, 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया जबकि 63 अन्य को बरी किया.
1 मार्च 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने सभी दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

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गोधरा के अपराधी कांग्रेस के पदाधिकारी 
यह लेख 17 जुलाई, 2022 का है

गुजरात दंगे: जांच टीम का कहना है कि अहमद पटेल ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ साजिश रची
एक गवाह के बयान का हवाला देते हुए एसआईटी ने कहा कि दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल के इशारे पर साजिश को अंजाम दिया गया था। इसमें आरोप लगाया गया है कि अहमद पटेल के कहने पर सुश्री सीतलवाड को 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के बाद 30 लाख रुपये मिले थे।

भारत समाचार द्वारा संपादित अभिषेक चक्रवर्ती(पीटीआई से इनपुट्स के साथ)अपडेट किया गया: 17 जुलाई, 2022 

गुजरात दंगा मामले की जांच कर रही एसआईटी ने कांग्रेस के अहमद पटेल पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया है

अहमदाबाद:गुजरात पुलिस ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल की "बड़ी साजिश" का हिस्सा थीं।
सुश्री सीतलवाड 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में लोगों को झूठा फंसाने की साजिश रचने के आरोप में हाल ही में अहमदाबाद अपराध शाखा द्वारा गिरफ्तार किए गए दो व्यक्तियों में से एक हैं।

सत्र अदालत के समक्ष पुलिस की विशेष जांच टीम द्वारा दायर एक हलफनामे में कहा गया है कि वह 2002 के दंगों के बाद राज्य में भाजपा सरकार को बर्खास्त करने के लिए दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक "बड़ी साजिश" का हिस्सा थी।

विशेष जांच दल द्वारा लगाए गए आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस ने आज कहा कि वह "दिवंगत श्री अहमद पटेल के खिलाफ लगाए गए शरारती आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन करती है। यह प्रधानमंत्री की सांप्रदायिक नरसंहार के लिए किसी भी जिम्मेदारी से खुद को मुक्त करने की व्यवस्थित रणनीति का हिस्सा है।" जब वह 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस नरसंहार को नियंत्रित करने में उनकी अनिच्छा और अक्षमता के कारण भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को मुख्यमंत्री को उनके राजधर्म की याद दिलानी पड़ी थी ।

प्रधान मंत्री पर हमला करते हुए, कांग्रेस ने आगे आरोप लगाया कि "प्रधानमंत्री की राजनीतिक प्रतिशोध की मशीन स्पष्ट रूप से उन दिवंगत लोगों को भी नहीं बख्शती है जो उनके राजनीतिक विरोधी थे। यह एसआईटी अपने राजनीतिक आका की धुन पर नाच रही है और जहां भी कहा जाएगा वह बैठ जाएगी।" हम जानते हैं कि कैसे एक पूर्व एसआईटी प्रमुख को मुख्यमंत्री को 'क्लीन चिट' देने के बाद राजनयिक कार्यभार से पुरस्कृत किया गया था।''

भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा, "गुजरात की छवि खराब करने की साजिश श्री अहमद पटेल के इशारे पर तीस्ता सीतलवाड और उनके साथियों द्वारा रची गई थी। अहमद पटेल जी कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार थे। बक दरवाजे पर रुकता है" सोनिया गांधी का!"

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डीडी ठक्कर ने विशेष जांच दल या एसआईटी के जवाब को रिकॉर्ड पर लिया और जमानत याचिका पर सुनवाई सोमवार को तय की।

गुजरात दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के आरोप में सुश्री सीतलवाड को पूर्व आईपीएस अधिकारियों आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट के साथ गिरफ्तार किया गया है।

"इस बड़ी साजिश को अंजाम देते समय आवेदक (सीतलवाड) का राजनीतिक उद्देश्य निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करना या अस्थिर करना था... उसने निर्दोष व्यक्तियों को गलत तरीके से फंसाने के अपने प्रयासों के बदले प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल से अवैध वित्तीय और अन्य लाभ और पुरस्कार प्राप्त किए। गुजरात, “एसआईटी के हलफनामे में कहा गया है।

कौन हैं गीता रबारी, गायिका जिनकी श्री राम घर आए भजन के लिए पीएम मोदी ने की सराहना?
कौन हैं गीता रबारी, श्री राम घर आए भजन के लिए पीएम मोदी ने की सराहना?
एक गवाह के बयान का हवाला देते हुए एसआईटी ने कहा कि दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल के इशारे पर साजिश को अंजाम दिया गया था। इसमें आरोप लगाया गया है कि अहमद पटेल के कहने पर सुश्री सीतलवाड को 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के बाद 30 लाख रुपये मिले थे।

एसआईटी के हलफनामे में कहा गया है कि सुश्री सीतलवाड दंगा मामलों में भाजपा सरकार के वरिष्ठ नेताओं के नाम फंसाने के लिए दिल्ली में उस समय सत्ता में मौजूद एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं से मुलाकात करती थीं। 

इसने एक अन्य गवाह का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि सुश्री सीतलवाड़ ने 2006 में एक कांग्रेस नेता से पूछा था कि पार्टी "केवल शबाना और जावेद को मौका" क्यों दे रही है और उन्हें राज्यसभा का सदस्य क्यों नहीं बना रही है।

पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखने के एक दिन बाद, राज्य पुलिस ने सुश्री सीतलवाड को गिरफ्तार कर लिया था। उन पर, श्री श्रीकुमार और श्री भट्ट के साथ, अन्य अपराधों के अलावा आईपीसी की धारा 468 (जालसाजी) और 194 (मौत के अपराध के लिए सजा पाने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) के तहत आरोप लगाए गए थे।

(पीटीआई से इनपुट्स)
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