ईसाई मिसनरियों से, सर्वोच्च न्यायालय का डरना और पीछे हटाना खतरे की नई घंटी


- अरविन्द सीसोदिया 

जब उड़ीसा में ग्राहम स्टेंस को जिन्दा जला कर मारा गया था , तब हिंदी पत्रिका इण्डिया  टुडे ने ग्राहम के टिकिट  नुमा बहुत से चित्र मुख्य पृष्ठ पर छापे  थे , इस घटना की इक तरफ़ा निंदा की थी ...! मेंने इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप एक लंम्बा पत्र भेजा था की सारी दुनिया में किसा तरह से इसाइयत को हिंसा और अन्य बहुत से गलत रास्तों से फैलाया गया ..! मेरे पत्र की मात्र कुछ लाइनों को 
इण्डिया  टुडे ने अपने अगले अंक में जगह दी थी , उन्होंने कलर्ड बोक्स पत्र के रूप में इसे छापा था ...!  
  सच यही है की चर्च और पोप के नेतृत्व में पूरी दुनिया को जबरिया ईसाई बनानें का अभियान चल रहा है .., पहली सहस्त्रावदी में यूरोप को , दूसरी में अमेरिका , आस्ट्रेलिया और अफ्रीका को ईसाई बनाया गया ..., अमेरिका में मूल निवासी रेड इंडीयंस  को पशुओं की तरह  शिकार करके मारा गया ! मुसलमानों के साथ ८/१० बड़े धर्म युद्ध लडे गये ..! अब इस सहस्त्रावदी में भारत के रास्ते सम्पूर्ण एशीया को ईसाई बनानें का उद्देश्य है , ये कोई अनुमान नहीं पोप द्वारा घोषित ईसाई विस्तार कार्यक्रम है ....! एक कैथोलिक महिला को भारत के प्रधान मंत्री के घर में प्रवेश दिलाना और फिर उसे उस घर को स्वामी  बना कर पूरे भारत पर सरल रास्ते से इसाइयत में फंसा लेने का एक बड़ा भारी षणयंत्र  चल रहा है .., जो सीना ताने चल रहा है , बड़े बड़े सत्ता संस्थानों पर इनने कब्जा कर लिया है ..! कमजोर प्रतिरोध के कारण इनके होंसले बड़े हुए हैं ! इन विषम  परिस्थिती में जहाँ न्यायालय से सभी उम्मीदें थी और उसने सच कहा भी ...! मगर आश्चर्य है की यह संस्थान भी क्यों कर सच से पीछे हटा ...!! सर्वोच्च न्यायालय का डरना और पीछे हटाना खतरे की नई घंटी है ....!! तमाम देश को सावधान होना ही होगा ..!! न्यायालय की अभिव्यक्ती सिर्फ और सिर्फ न्याय होनीही चाहिए , उसमें सच  कहनें का साहस होना ही चाहिए , यदी वह पीछे हटा तो व्यवस्था विखर जायेगी !!!!!   
कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद दारा सिंह के वकील शिवशंकर मिश्रा न पत्रकारों को बताया था कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस बात के पक्के सबूत मिले हैं कि स्टेंस जबरन धर्म परिवर्तन कर रहे थे. और अदालत ने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन समाज के लिए अच्छा नहीं है.
    सुप्रीम कोर्ट ने शुरु में अपने निर्णय में कहा था कि “किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था को किसी की धार्मिक आस्थाओं को बदलने की कोशिश, चाहे वह आर्थिक प्रलोभन के जरिये हो अथवा जबरन, नहीं करना चाहिये… ग्राहम स्टेंस की नृशंस हत्या उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में चल रहे धर्म-परिवर्तन का नतीजा है…”,इस वाक्य पर चर्च से जुड़े मिशनरी एवं एवेंजेलिस्ट संगठनों ने बवाल मचा दिया, उनके सुर में सुर मिलाने के लिये हमारे यहाँ फ़र्जी NGOs एवं ढेर सारे विदेशी पालतू-कुत्तेनुमा मानवाधिकार संगठन हैं…सभी ने मिलकर “धर्म परिवर्तन” शब्द को लेकर आपत्ति के भोंपू बजाना शुरु कर दिया… और सभी को अचरज में डालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही निर्णय के कुछ अंशों को बदलते हुए उन सभी को खुश कर दिया-----

    अपने ७६ पन्नों के आदेश में जस्टिस पी सदालसिवन और बीएस चौहान की खंडपीठ ने अपने दो वक्तव्यों को वापस ले लिया है.
    सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी, “हम उम्मीद करते हैं कि महात्मा गांधी का जो स्वप्न था कि धर्म राष्ट्र के विकास में एक सकारात्मक भूमिका निभाएगा वो पूरा होगा. किसी की आस्था को ज़बरदस्ती बदलना या फिर ये दलील देना कि एक धर्म दूसरे से बेहतर है उचित नहीं है.” 

    इसके बदले अदालत ने अब कहा है कि “इस बात में कोई विवाद नहीं कि किसी और की धार्मिक आस्था को किसी तरह से भी प्रभावित करना न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. ”



    सुप्रीम कोर्ट ने फैसले से हटाये पैरा  
    नव भारत टाइम्स ,२६ जनवरी २०११ ,नई दिल्ली
    ऑस्टे्रलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस की हत्या के मामले में दारा सिंह की उम्रकैद की सजा बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में जो टिप्पणियां की थी, उनमें से दो टिप्पणियों को हटा दिया गया है।
    जस्टिस पी. सथासिवम और जस्टिस बी. एस. चौहान ने शुक्रवार को अपने फैसले में से दो पैराग्राफ हटा दिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस घटना को 12 साल हो चुके हैं। इस दौरान दारा सिंह जेल में रहा। हाई कोर्ट ने दारा सिंह को जो उम्रकैद की सजा दी थी, उसे बढ़ाए जाने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि
    स्टेंस और उसके दो बच्चों को सबक सिखाने की मंशा से दोषी ने जला दिया था। दोषी इस बात से खफा था कि ग्राहम गरीब आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। इस टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने डिलीट कर दिया है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा था कि 'निसंदेह किसी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं हो सकता कि वह किसी को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाए और यह कहे कि अमुक धर्म ज्यादा अच्छा है'। इस टिप्पणी को भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट से डिलीट कर दिया। ऐसा आमतौर पर देखने को नहीं मिलता जब कोर्ट अपनी टिप्पणी को डिलीट करे। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद इस मुद्दे पर काफी बहस हो रही है। 

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    सुप्रीम कोर्ट ने ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों की हत्या के मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने 6 साल पहले आरोपी दारा सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि 11 अन्य आरोपियों को रिहा कर दिया था। दारा सिंह उड़ीसा के क्योंझर जिले में मिशनरी का काम कर रहे ऑस्ट्रेलिया के नागरिक ग्राहम स्टेंस और उनके दो छोटे बच्चों को जनवरी 1999 में जिंदा जलाने का दोषी है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पी सतशिवम और जस्टिस बीएस चौहान की दो सदस्यीय बेंच ने इस मामले में 15 दिसंबर 2010 को इस मामले की सुनवाई कर, फैसला सुरक्षित रखा था। मामले की जांच सीबीआई ने की थी और सीबीआई के वकील विवेक तंखा ने आरोपी के लिए मौत की सजा की मांग की थी। लेकिन अदालत ने हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि मौत की सजा 'रेयरेस्‍ट ऑफ रेयर' मामले में ही दी जाती है और यह मामला इस श्रेणी में नहीं आता। इस मामले में सेशंस कोर्ट ने दारा सिंह को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने 19 मई 2005 को इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था। हाईकोर्ट ने 11 उन आरोपियों को भी बरी कर दिया था, जिन्हें सेशंस कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 
    क्या है मामला       डॉ ग्राहम स्टुअर्ट स्टेंस ऑस्ट्रेलिया से आए ईसाई मिशनरी थे। वे लंबे समय से आदिवासी गरीबों के बीच काम ( धन एवं प्रलोभनों के आधार पर धर्मान्तार्ण ) करवा रहे थे। 22 जनवरी 1999 की रात को स्टेंस क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में अपनी स्टेशन वैगन में दो पुत्रों – फिलिप औऱ तिमोथी के साथ सो रहे थे। तभी आक्रोशित हिंदू कार्यकर्ता दारा सिंह ने  वैगन में आग लगा दी। स्टेंस और उनके दोनों पुत्र जलती गाड़ी में से भाग नहीं सके और जिंदा जल गए।
           स्टेंस 1941 में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में पैदा हुए। 1965 में वे पहली बार भारत के दौरे पर आए। यहां वे इवेंजिलिकल मिशनरी सोसायटी ऑफ मयूरभंज के साथ जुड़े। इसके बाद वे लगातार आदिवासियों के बीच काम करते रहे। उन्होंने मयूरभंज लेप्रोसी होम नाम से 1982 में एक सोसायटी बनाई और कुष्ठ रोगियों के बीच काम 
    ( धन एवं प्रलोभनों के आधार पर धर्मान्तार्ण ) करने लगा गये ।
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    दारा के साथ ग्राहम भी दोषी: सुप्रीम कोर्ट
    एजेंसी... नई दिल्ली, 22 जनवरी। उच्चतम न्यायालय द्वारा आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उसके दो पुत्रों की जनवरी, 1999 में हुई हत्या के दोनों मुख्य आरोपियों की उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा है।

    साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई मिशनरियों को भी जबरन धर्म परिवर्तन के लिए कटघरे में खड़ा किया है। उल्लेखनीय है कि जबरन धर्म परिवर्तन करवाने से रुष्ट होकर दारा सिंह और महेंद्र हेम्ब्रम ने उड़ीसा के क्योंझर जिले में ग्राहम स्टेन्स और उसके दो पुत्रों को जिंदा जला दिया था। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में ईसाई मिशनरियों को भी पाक-साफ नहीं ठहराया है।

    जस्टिस पी. सदाशिवम और बी.एस. चौहान की बेंच ने कहा कि किसी के धार्मिक विश्वास में दखलंदाजी करना और जबरन धर्म परिवर्तन कराने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। कल इस हत्याकांड पर अपना फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि जांच में यह पाया गया है कि ग्राहम
    धर्मांतरण में लिप्त था और इस बात के भी सबूत मिले हैं कि उक्त क्षेत्र में ईसाई मिशनरी लोगों के जबरन धर्म परिवर्तन करा रहे थे।
    दारा सिंह के वकील एस.एस. मिश्रा ने कहा कि मेरा मुवक्किल सिर्फ इस जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध था और उसकी मात्र धमकाने की नीयत थी न कि उन्हें जान से मारने की। मिश्रा ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल को किसी ने भी अपराध करते नहीं देखा है, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। मेरे मुवक्किल के खिलाफ सीधेतौर पर कोई सबूत मौजूद नहीं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह केवल उन्हें सबक सिखाने और धमकाने की मंशा से वहां गया था न कि उन्हें जान से मारने।
    गौरतलब है कि उड़ीसा के क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में 22 जनवरी, 1999 को ग्राहम स्टेंस और उसके दो लड़कों 10 वर्षीय फिलिप तथा 6 वर्षीय टिमोथी को उस समय आग के हवाले कर दिया गया था (अभियुक्तों द्वारा) जब वे चर्च के बाहर एक वैन में सो रहे थे। इस अपराध के लिए हेम्ब्रस और दारा सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है।
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    Supreme Court modifies words in Graham Staines murder verdict

    Tue Jan 25 2011  by ANI
    Supreme Court on Tuesday modified a portion of its judgment in the Graham Staines murder case.
    The apex court bench of Justice P. Sathasivam and Justice B.S. Chauhan, in a suo motu order modifying the judgment, said it was deleting the portion, which read that the guilty, Dara Singh, and his accomplice wanted to teach Staines a lesson for his conversion activities.
    The bench said the use of words “by use of force” is replaced with “by any means”.
    In its judgement on last Friday, the apex court had upheld the life sentence for Dara Singh, convicted for killing Australian missionary Graham Staines and his two sons in Orissa’s Koenjhar district in 1999.
    Dara had filed an appeal challenging his conviction and the life sentence awarded to him.
    The appeals were admitted by the apex court in October 2005.
    On May 19, 2005, the Orissa High Court had commuted to life imprisonment the death penalty imposed by the sessions court on Dara Singh.
    However, the High Court had acquitted eleven others who were awarded life terms by the trial court in the case.
    Dara Singh and Mahendra Hembrom were found guilty of burning to death Staines and his sons, who were sleeping inside a van outside a church, at Manoharpur village in Koenjhar district of Orissa on January 22, 1999. (ANI)

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