नेताओं पर जूते-चप्पल या थप्पड़






- अरविन्द सिसोदिया 
२०११ का हीरो 
कभी जूता तो कभी चप्पल तो कभी थप्पड़ भी रहा 


मुद्दा कोई भी हो, तकरार हुई नहीं कि मारपीट शुरू हो जाती है। नाराज नागरिक नेताओं पर जूते-चप्पल फेंकने या थप्पड़ मारने पर उतारू दिखते हैं तो सड़कों पर हर कहीं से ‘रोड रेज’ की खबरें मिल रही हैं। खबरें ही नहीं, सरकारी आंकड़े भी बयां रहे हैं कि हर कहीं ‘कोलावेरी हिंसा’ का चढ़ता ग्राफ लोगों को हल्ला बोल मुद्रा में ला रहा है। निरीह औरतों, बच्चों तथा बूढ़ों के खिलाफ तो विशेष तौर से, जो पलटवार करने में असमर्थ हैं।

नागरिकों के गुस्से पर ठंडे छींटे डालने और तटस्थता और शांति की अपील करने की उम्मीद हम किससे करें? पहले सहज जवाब होता था, गांधीवादियों या घट-घटव्यापी मीडिया से, पर इन दिनों गांधीवाद के उपासक भी नापसंद व्यवस्था के प्रतिनिधियों के खिलाफ गुस्से और मारपीट को सही ठहराने लगे हैं और मीडिया इन हिंसक छवियों और बयानों को दिनभर भुनाता हुआ हिंसा करने वालों को राज-समाज में एक तरह की सांस्कृतिक स्वीकृति और शोहरत दिला रहा है। लगता है यह लगभग मान लिया गया है कि आज जो कुछ व्यवस्था सम्मत है, वह कुचलने लायक है और उसके खिलाफ हिंसक तोड़फोड़ निंदनीय हरकत नहीं, जनता का लोकतांत्रिक हक और सराहनीय तेवर है।
---------------

 थप्पड़ के साइड इफेक्ट पर एक महत्वपूर्ण रिसर्च
20 Dec 2011,
http://navbharattimes.indiatimes.com
किशोर कुमार मालवीय॥
थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब , प्यार से लगता है - यह रोमांटिक डायलॉग ' दबंग ' में हिट हो सकता है , पर रीयल दबंगों पर हिट नहीं हो सकता। यह अजीब संयोग है कि इस डायलॉग के हिट होते ही हर तरफ थप्पड़ों की बरसात होने लगी। जिसे देखो दबंगई दिखा रहा है , जहां - तहां थप्पड़ जमा रहा है। जिनकी डिक्शनरी में प्यार जैसे शब्द नहीं हैं , उनका पाला थप्पड़ से ज्यादा पड़ रहा है - कहीं चला रहे हैं तो कहीं खुद खा रहे हैं। थप्पड़ों का मानो अखिल भारतीय अभियान चल पड़ा हो। थप्पड़ों की बढ़ती मांग ( या फरमाइश ) या एकाएक थप्पड़ों के बढ़ते प्रचलन ने मुझे इस पर शोध करने को मजबूर कर दिया। शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

थप्पड़ दो तरह के होते हैं - एक , जिनमें आवाज नहीं होती या बहुत कम होती है। जरूरी नहीं कि इसमें चोट भी कम हो। आवाज और चोट में कोई संबंध नहीं है। ये थप्पड़ मारने या थप्पड़ खाने वाले की औकात से सीधा जुड़ा होता है। दूसरे तरह के थप्पड़ में आवाज बड़ी तेजी से होती है। इसमें भी जरूरी नहीं कि चोट ज्यादा लगे। इसमें आवाज का महत्व होता है क्योंकि इस तरह के थप्पड़ का सीधा संबंध थप्पड़ खाने वालों से जुड़ा होता है। यानी थप्पड़ खाने वाला व्यक्ति जितना बड़ा दबंग , उसकी आवाज का वॉल्यूम उतना ही ज्यादा। और कभी - कभी इसकी गूंज अति सुरक्षा वाले संसद भवन तक पहुंच जाती है।

गहन छानबीन के बाद मुझे आश्चर्यजनक जानकारियां मिलीं। कई बार कुछ थप्पड़ प्यार और आपसी मेलजोल बढ़ाते हैं। कई दिनों से संसद में कामकाज बंद था। रोज हंगामा चल रहा था और पक्ष - विपक्ष एक - दूसरे को सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन संसद के बाहर चले एक थप्पड़ ने कमाल कर दिया। जनता पर हर रोज पड़ रहे महंगाई और भ्रष्टाचार के चाबुक एक तरफ धरे रह गए। महंगाई पर ' आगबबूला ' विपक्ष अचानक चाबुक भूल गया और तमाम विरोध और बहिष्कार को निलंबित करते हुए एकजुट हो गया। दस दिन में केवल कुछ समय के लिए एक बार बहस हुई - महंगाई और भ्रष्टाचार पर नहीं , थप्पड़ पर। यानी एक थप्पड़ ने ' नफरत ' करने वालों के सीने में ' प्यार ' भर दिया। बड़े - बड़े नेताओं ने इसका असर कम करने के लिए और थप्पड़ खाने वाले के साथ सहानुभूति दिखाने के लिए अपने तरकश के सारे बाण छोड़ दिए। महंगाई और काले धन के लिए एक भी बचाकर नहीं रखा। पर इसमें सहानुभूति कम और डर ज्यादा था कि कहीं अगली बारी उनकी न हो।

लेकिन हर थप्पड़ एक जैसे नहीं होते। मैंने पहले ही कहा कि थप्पड़ का महत्व इस पर निर्भर करता है कि थप्पड़ मारने वाला या थप्पड़ खाने वाला कौन है। उसकी क्या औकात है। अब अगर थप्पड़ खाने वाला एक टीचर है , वह भी महिला तो उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित होगी। पहली बात तो वह टीचर है , ऊपर से महिला। इसके बावजूद मुकाबला कर बैठी दबंगों से। उस महिला टीचर को शायद कोई गलतफहमी हो गई थी। कुछ दिन पहले उसने टीवी पर थप्पड़ के साइड इफेक्ट देखे थे। कैसे उसकी गूंज लोकसभा में सुनाई दी थी। कैसे थप्पड़ मारने वाला सलाखों के पीछे पहुंच गया। कैसे पक्ष - विपक्ष ने सदन को सर पर उठा लिया था। फिर उसके मामले में तो बवाल ज्यादा होगा। आखिर सदन की स्पीकर स्वयं एक महिला हैं , सरकारी पक्ष की नेता भी महिला हैं। और तो और विपक्ष की नेता भी एक महिला हैं। ऐसे में थप्पड़ मारने वाले सरपंच की अब खैर नहीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मेरा शोध ये कहता है कि इसमें गलती उस महिला की है क्योंकि थप्पड़ के सिद्धांत के मुताबिक आवाज तभी ज्यादा होती है , जब थप्पड़ मारने वाला नहीं , थप्पड़ खाने वाला दबंग हो। अगर मारने वाला बड़ा है तो उसकी आवाज चार कदम भी नहीं जा पाएगी। मेरा शोध कहता है , थप्पड़ के साइड इफेक्ट तभी होते हैं , जब थप्पड़ मारने वाला नहीं , थप्पड़ खाने वाला मजबूत हो। तभी तो थप्पड़ मारने वाला एक आदमी आज जेल में है , जबकि बाकी थप्पड़मारू दबंग बाहर मौज कर रहे हैं।


=======

समारोह में उमर अब्‍दुल्‍ला की ओर जूता फेंका गयाआज तक ब्‍यूरो | 
श्रीनगर, 15 अगस्त 2010


जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर आज श्रीनगर में 15 अगस्त के कार्यक्रम के दौरान जूता फेंका गया. जूता फेंकने वाला शख्स कार्यक्रम की सुरक्षा में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर था. बख्शी स्टेडियम में हो रहे कार्यक्रम के दौरान ये घटना हुई. जिस वक्त उमर अब्दुल्ला झंडे की सलामी ले रहे थे उसी वक्त वीआईपी लॉबी में बैठे इस पुलिस इंस्पेक्टर ने उनकी ओर निशाना करके जूता उछाल दिया. ये जूता परेड के रास्ते में जा गिरा. जूता फेंकने वाले को फौरन हिरासत में ले लिया गया है
-------

पत्रकार ने गृहमंत्री चिदंबरम पर जूता फेंका


7 Apr 2009, 1240 hrs IST,नवभारतटाइम्स.कॉम 
http://navbharattimes.indiatimes.com


पत्रकार ने गृहमंत्री चिदंबरम पर जूता फेंका : पत्रकार जनरैल सिंह ने 
नई दिल्ली ।। गृहमंत्री पी . चिदंबरम पर ' दैनिक जागरण ' अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने 24 , अकबर रोड पर मौजूद कांग्रेस हेड क्वार्टर में प्रेस कॉन्फ्रेन्स के दौरान जूता फेंक दिया। ख़बरों के मुताबिक जरनैल सिंह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने से नाराज थे। 
इसी मुद्दे पर जरनैल सिंह ने गृहमंत्री से सवाल पूछा। लेकिन जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर पत्रकार ने चिदंबरम पर जूता फेंक दिया। इस घटना के बाद जरनैल सिंह ने कहा कि हो सकता है कि उनका तरीका ग़लत हो , लेकिन वह इसके लिए माफी नहीं मांगेंगे। जरनैल सिंह ने यह भी कहा कि मुझे अफसोस है कि ऐसा हुआ , ऐसा नहीं होना चाहिए। जरनैल सिंह ने कहा कि उन्हें चिदंबरम से गिला नहीं है। इस घटना के बाद जरनैल सिंह को तुगलक रोड थाने की पुलिस ने हिरासत में ले लिया। लेकिन करीब एक घंटे की पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। कुछ महीनों पहले अमेरिका के पूर्व प्रेज़िडंट जॉर्ज बुश पर इराक में एक पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने जूते फेंके थे।
=====
http://sharadshuklafaizabad.jagranjunction.com
29 Apr, 2011
जूते चप्पलों का तिलिस्म
मेरे जानने में न जाने कितनी राजनैतिक हस्तियों को चप्पल जूतों का स्वाद चखने को मिला है| पर मैंने सबसे पहले जूता खाते हुए जोर्ज बुश को देखा था,पर बुश जी इस जूते का शिकार होते होते बाल-बाल बचे थे| पर महाशक्ति अमेरिका के रास्ट्रपति के ऊपर कोई जूता फेंके यही काफी था| ये जूता एक पत्रकार ने फेंका था, जो शायद बुश महाशय के व्यवहार से संतुष्ट नहीं था| ये बात जूता बुश तक ही सीमित नहीं था, हर सभ्यता की तरह जूता फेंकना भी भारत में पश्चिम देश से आ गया| अब इसके बाद पी.चिदंबरम, सुरेश कलमाड़ी और इसके अलावा कई प्रसिद्द नेताओं को भी जूते चप्पल का सामना करना पड़ा है| खुद को युवा कहने वाले जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के ऊपर भी जूता फेंका गया था| इसके बाद ये सिलसिला चलता ही रहा|
पर इन सब घटनाओं में एक चीज़ समान थी, इनमे किसी को जूते से चोट नहीं लगी और न ही फेंके गए चप्पलों से इनके गाल लाल हुए| ध्यान देने की बात है की जो व्यक्ति किसी व्यक्ति पर चप्पल-जूते फेंक सकता है तो वह जूते-चप्पलों के जगह पर बम और पत्थर भी फेंक सकता है, पर ऐसा कभी नहीं हुआ| पर ऐसा क्यों नहीं हुआ ये विचारणीय है, मैंने इसपर कई लोगो से बात की तो मैंने पाया की जूते फेंकने वाले लोगों का उद्देश्य बस अपने को मशहूर करना होता है| अगर हम कुछ साल पीछे जाए उस समय और स्थान पर बुश जूते का शिकार हुए, उस पत्रकार द्वारा जूते मारने के बाद वो पत्रकार तो रातों-रात एक मशहूर हस्ती बन गया| अगर ऐसा करने वाले लोगों के नाम और पता गुप्त रख कर उन पर सख्त कार्यवाही की जाए तो मुझे ये विश्वास है की इस तरह की बचकानी हरकत का सिलसिला अवश्य ही थम जाएगा| जिस वक़्त पर बुश को जूता पड़ा था अगर प्रशासन उस पत्रकार का नाम और पता गुप्त रखकर उस पर कार्यवाही करता तो शायद पी. चिदंबरम, सुरेश कलमाड़ी जैसे लोग इसके शिकार न होते| पर मीडिया इस बात को नहीं समझती, अगर मीडिया भी ऐसी हरकत करने वालों के नाम टी.वी. चेन्नलों पर इतना न उछाले तो आगे से ऐसा कभी नहीं होगा| और अंत में मुझे ये कहने भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है की अगर इस “जूताबाजों” का के नामों प्रचार अगर आगे भी होता रहेगा तो ऐसी बचकानी हरकतों को आगे भी होने से कोई नहीं रोक पायेगा| उम्मीद है की मेरी इस बात को लग समझे और इस जूता चप्पल फेंकने वालों के नाम का ज्यादा प्रचार न करे, क्योकि “जूतेबाज़” ऐसा सिर्फ अपने “पब्लिसिटी” (प्रचार) के लिए करते है| और वो ऐसा इसलिए करते है क्योकि कम समय में चर्चित होने का नया फैशन जो है|
————-शरद शुक्ला, फैज़ाबाद

--------------------------------------

जूते चप्पलों की राजनीति
Tuesday, July 12th, 2011 
कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटालों की ख़बरें के साथ ही देश की करोड़ों जनता जो सिर्फ सोचती होगी, उसे आखिरकार एक व्यक्ति ने अंजाम दे ही दिया।
ये बिल्कुल बेमानी है कि उस शख्सका नाम कपिल ठाकुर है या वो मध्य प्रदेश का रहने वाला है, मायने तो सिर्फ इतने का है कि उसने उस आक्रोश को आवाज़ और रुप दिया, जिसकी ताक में तो लाखों लोग थे, लेकिन या तो मौका नहीं मिल रहा था या फिर हिम्मत नहीं थी।
दरअसल ये कहानी सिर्फ कलमाडी और कलमाडी पर पड़े जूते की नहीं है। ये कहानी है जनता के उस बेबस आक्रोश की, जिसे हम सब चुपचाप खून की घूंट की तरह पीते रहते हैं।
जूते और चप्पल की ये कहानी की शुरूआत सबसे बड़े रुप में सद्दाम हुसैन से होती है… जिसे बड़े तौर पर दुनिया ने देखा। जिस सद्दाम हुसैन से इराक कांपता था, जिसकी इजाज़त के बिना वहां की हवा भी चलने से इंकार करती थी, उसी इराक में सद्दाम के पतन के बाद उसकी आदम कद मूर्ति को लोगों ने न सिर्फ गिरा दिया, बल्कि उसपरजूतों-चप्पलों की बौछार करते रहे।
14दिसंबर 2008 को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर इराक में प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान वरिष्ठ पत्रकार ने जूताफेंका। फिर 2 फरवरी 2009 ब्रिटेन में कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के ऊपर 27 वर्षीय नौजवान ने जूता फेंककर विरोध जताया। उसके बाद भारत में 7 अप्रैल 2009 को नई दिल्ली में प्रेस काँफ़्रेंस के दौरान एक पत्रकार जरनैल सिंह ने गृह मंत्री पी. चिदंबरम की ओर जूता उछाल कर विरोध जताया। इतना ही उसके बाद तो राज्यों में भी जूता फेंककर विरोध जताने की प्रक्रिया शुरू हो गई। 16 अप्रैल 2009 को मध्य प्रदेश के कटनी में चुनावी रैली के दौरान एक भाजपा कार्यकर्ता ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर खड़ाऊ फेंक दी।26 अप्रैल 2009 को अहमदाबाद में चुनावी रैली के दौरान एक युवा इंजीनियर ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओरजूता फेंका। इस मामले में युवाओं के साथ ही एक किसान ने भी नवीन जिंदल पर चप्पल फेंकी। उसके बाद तो यासीन मलिक, उमर अब्दुल्ला और भी ना जाने किस- किस छोटे बड़े नेताओं पर जूता फेंकने का कार्यक्रम चलता रहा।
जिस तरह आजादी के समय अंग्रेजों से लोहा लेने वाले आजादी के परवानों ने मशाल का उपयोग कर क्रांति की शुरूआत की थी, और मशाल को क्रांति का प्रतीक बन गई थी उसी तरह आजादी के 61 वर्ष बाद 21वीं सदी की के भारत देश में वर्तमान में जिस तरह लोग जूते चप्पल फेंककर अपना विरोध जता रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि आने वाले कुछ सालों बाद जूते- चप्पलों को क्रांति का प्रतीक माना जाएगा।
नेताओं को जनता के इन जूतेचप्पलों को चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए। जो उन्हें ये संदेश दे रहे हैं कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है आप लोग सुधर जाओ वरना अंजाम भुगतने को तैयार हो जाओ।
वर्तमान में जिस तरह से भ्रष्टाचार, घुंसखोरी,लूटपाट चरम पर है उससे तो यही लगता है कि देश गर्त में गिरता जा रहा है। ऐसे में अन्ना हज़ारे ने एक किरण दिखा कर लोगों के आक्रोश को और अधिक बढ़ा दिया है। और आम आदमी को जूते चप्पल के रूप में एक हथियार मिल गया है।
देश में जिस भी नेता पर जूते चप्पल चले हैं उसकी छवि पर कहीं ना कहीं कोई दाग ऐसा लग गया था जिससे कि आम आदमी आक्रोश से भर गया था। जैसे जरनैल सिंह के उस जूते ने वो कर दिखाया जो होना शायद मुश्किल था। वो उसके जूते का ही कमाल था कि कांग्रेस को अपने दो बड़े नेताओं की टिकट काटनी पड़ी थी।
इतना ही नहीं देश के नेताओं के साथ ही और भी कई जानी मानी हस्तियों पर भी जूते चप्पलों ने अपनी कृपा दिखाई है। अभिनेता जितेंद्र की रैली में, सोनू निगम के एक प्रोग्राम में भी जूते चले हैं। देश में अपराध के विरोध में भी लोगों ने अपने चप्पल उठाए हैं। और अपना विरोध जताया है। रूचिका मर्डर केस में एसपी राठौर पर एक व्यक्ति ने ब्लेड से वार कर अपना आक्रोश जताया था, हर कोई जानता था कि राठौर आरोपी है लेकिन किसी को भी हिम्मत नहीं थी कि कुछ बोले लेकिन उस युवक का क्रोध इस हद तक बढ गया था कि उसे ब्लेड चलानी पड़ी।
इतना ही न ही आरूषि हत्याकांड के संदिग्ध आरोपी तलवार पर भी ब्लेड से वार हुआ था। देश में ऐसे और भी कई लोग हैं जिन पर जूते चप्पलों की बरसात होना जरूरी है। वो कौन हो सकते हैं? और कौन-कौन है? वो भी जानते हैं और हम भी, इसलिए जरूरी है कि वे अब चेत जाएं।
नेताओं के साथ ही अपराधियों के लिए भी ये एक चेतावनी है आम जनता का आक्रोश है। जिसे लोग जूते चप्पलब्लेड से दर्शा रहे हैं। आने वाले वर्षों में यदि देश और नेताओं का यही हाल रहा तो जूते चप्पलों में इज़ाफा होगा और लाज़मी है कि इस आक्रोश और इजाफे का बहुत बड़ा दंश नेताओं को झेलना पड़ेगा।
अमांद्रा सनवाल
Short URL: http://www.wisdomblow.com/hi/?p=604



टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

विश्व व्यापी है हिन्दुओँ का वैदिक कालीन होली पर्व Holi festival of Vedic period is world wide

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

कांग्रेस ने देश को भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण और आतंकवाद दियाः भजन लाल शर्मा bjp rajasthan

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

भाजपा की सुपरफ़ास्ट भजनलाल शर्मा सरकार नें ऐतिहासिक उपलब्धियां का इतिहास रचा

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का प्रमाण

सिसोदिया से जब इस्तीफा लिया तो अब स्वयं केजरीवाल इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे - अरविन्द सिसोदिया

"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।