नैतिक हितों के लिए , सार्वजानिक क्षैत्र में अती नग्नता को रोका जाये






- अरविन्द सिसोदिया 
आज यह दुर्भाग्य है कि जिन संस्थानों को यथा केन्द्र सरकार, मीडिया और न्यायपालिका को, जिस सामाजिक पवित्रता की रक्षा करनी थी। उन्ही के संरक्षण या अपरोक्ष सहयोग से कम परिश्रम से अत्याधिक धन कमानें की विकृत मानसिकता वाले व्यवसाय को अवसर मिल रहा है।
 हमारे देश में सामान्य रूप् से सैक्स,अश्लीलता,नग्नता, कामुकता और उन पर सामाजिक हित का पर्दा....लगातार हमेशा में बना रहा है। यह इसलिये भी था कि सामाजिक व्यवस्था में विकृतियां न घुस जायें और पवित्रता के स्थापित मान्यदण्ड ध्वस्त न हो जाये। इस हेतु पवित्रता के संरक्षण के अनेक उपाय किये जाते थे। मगर आज यह उद्योग - व्यवसाय की तरह मान्य किया जाने लगा और उसके पक्ष में कुतर्कों को तर्क के रूपमें पेश किया जा रहा है। समाज को विकृति से बचाना है तो इन अनैतिकताओं का घोर विरोध करना ही होगा। नैतिक हितों के लिए , सार्वजानिक क्षैत्र में अती नग्नता को रोका जाये । पत्र-पत्रिकाएं , फ़िल्में ,चैनल , इंटरनेट आदि सभी नग्नता के व्यापर पर टूट पड़े हैं .... 


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सेक्स / यौन सर्वेक्षण के बहाने
-संजय कुमार
http://www.janokti.com
बाजारवाद के आगे आज सब कुछ गौण हो चुका है। आमखास इसकी गिरफ्त में हैं। मीडिया भी इससे अछूता नहीं। अपने को बाजार में बनाए रखने के लिए मीडिया बाजारवाद के झंडातले खड़ा हो कर हां में हां मिलाता मिलता है। भले ही इसके लिए उसे मापदण्ड, नीति व सिद्धांत को ताक पर ही क्यों न रखना पड़ा हो! बल्कि रख चुका है। बाजार में बने रहने के लिए आज मीडिया किसी हथकंडे को अपनाने से बाज नहीं आ रहा है। यह चिंता का विषय है। प्रिंट हो या इलैक्ट्रोनिक बाजारवाद के झंझावात में फंस कर अपने मूल्यों को तहस नहस करने में लगा हैं। और यह बार बार हो रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी व अंगे्रजी भाषा की दो पत्रिकाओं (इंडिया टुडे और आउटलुक) ने सेक्स व यौन सर्वेक्षण के नाम पर जो कुछ परोसा वह चर्चे में है। चर्चा है, सर्वेक्षण के बहाने अश्लील तस्वीरें छापने और एक दूसरे को पीछे छोड़ने की आपाधापी में पत्रकारिता के मूल्यों को शर्मषार करने का। सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरों को बड़े ही सहज ढंग से परोस गया है। सर्वेक्षण तो पाठकों के लिए कौतूहल का विषय है लेकिन तस्वीरों के पीछे मकसद साफ झलकता है। वह भी कवर पेज पर देकर पाठकों को लुभाने की दिशा में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है।
सेटेलाइट टीवी के क्रांतिकारी हस्तक्षेप से टीवी पत्रकारिता की दशा व दिशा दोनों ही बदल गई है। परिवार के साथ टीवी देखने की बात पुरानी एवं बेमानी हो चुकी है (दूरदर्शन को छोड़ कर)। वजह साफ है सेटेलाइट चैनलों की टीआरपी का खेल। कार्यक्रम हो या खबर, सेक्स, अश्लीलता, हिंसा, अपराध आदि को परोसना, नियति बनती जा रही है। गिनाने के लिए कई उदाहरण पड़े है। इस मामले में प्रिंट ने सेटेलाइट चैनलों को भी पीछे छोड़ दिया है। ड्रांइग रूम में कभी अतिथियों को आर्कषित करने के मद्देनजर टेबल पर रखी जाने वाली पत्रिकाएं बेड रूम की शोभा बढ़ाने लगी है। बच्चे या जवान बेटे बेटियों की नजर से पत्रिका को हटाया जाने लगा है। सेक्स या यौन विषय पर चर्चा करने के मुद्दे को खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके बहाने पोर्नाग्राफी को बढ़ावा देना कहां तक उचित है ? सेक्स या यौन की चर्चा बेसक होनी चाहिये लेकिन क्या नग्न या फिर सेक्स करते हुए तस्वीरे छाप कर कौन सी शिक्षा देने की कोशिश की जा रही है ? क्या बिना तस्वीरों की बात बन सकती थी ? देना ही था तो रेखांकन चित्र से भी काम चल सकता था। यही काम अगर मीडिया के अलावे कोई संस्था या फिर किसी पार्लर या किसी आयोजन में होता हो मीडिया उसकी खिचांई करने से बाज नहीं आता ! मीडिया द्वारा सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरें छापना इस बात का द्योतक है कि इसके पीछे बाजार है और बाजार के लिए सेक्स बिकाउ है।
पे्रस नियमों की मीडिया द्वारा धज्जी उड़ाने का सिलसिला जारी है। बिना तस्वीर के काम चलने के बावजूद नियमों को ताख पर रख कर तस्वीरें छापी जा रही है। महिलाओं के चेहरे को छुपाया भी नहीं जाता। कई उदाहरण पड़े हैं जब मीडिया ने मापदण्डों को ताख पर रख, बस अपने को बाजार में बनाये रखने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में महिलाओं की अर्द्धनग्न तस्वीर छाप दी। पटना की सड़क पर एक महिला को अर्द्धनग्न करने की खबर बासी नहीं पड़ी है। मीडिया ने उस महिला की अर्द्धनग्न तस्वीर ही नहीं छापी बल्कि उसका सही नाम भी छाप कर अपनी पीठ खुद थपथपा ली ! सवाल उठता है कि जब देश समाज में किसी महिला के कपड़े उतारे जाते हैं या फिर जेंटस ब्यूटी पार्लर में महिलाएं देह व्यापार करती पकड़ी जाती हैं तो मीडिया के लिए महिलाएं खबर बनती है। और उसे समय व हालात का हवाला देकर प्रसारित एवं प्रकाशित कर दिया जाता है। लेकिन जब यह सब पूरे होषो-हवास में किया गया हो तो उसे क्या कहेगें? ऐसे में सेक्स व यौन सर्वेक्षण के बहाने पत्रिकाओं ने जो नग्न व अर्द्धनग्न तस्वीरें छापी उसे लेकर सवाल उठना लाजमी है ?


सेक्स फैंटेसी का ओवरडोज
पोस्टेड ओन: 10 Dec, २०१०
http://premprakash.jagranjunction.com
खबरिया चैनलों के सनसनी मार्का लहजे में कहें तो यह दुनिया कहने के लिए तो काल्पनिक है पर इसका नीला रंग उतना ही नीला या खतरनाक है जितना दिल्ली के पालिका बाजार में बिकने वाली किसी ब्लू फिल्म का। दरअसल हम बात कर रहे हैं ‘हेंताई’ की। हेंताई यानी बच्चों के लिए बनाए गए कामूक कार्टून किरदार या कथानक। हेंताई की दुनिया बच्चों के लिए तो जरूर है पर इस दुनिया ने जिस कदर भोंडी कामुकता के बाजार में वर्चस्व बढ़ाया है, वह अमेरिका जैसे कई शक्तिशाली देशों की चिंताएं भी बढ़ा रहा है। हेंताई की पूरी दुनिया में बढ़ी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गूगल सर्च पर हेंताई लिखते ही पलक झपकते ही करीब 5 करोड़ पन्ने हाजिर हो जाते हैं। इसमें तो कई ऐसे वेब ठिकाने हैं जहां विजिट करते ही कार्टून किरदारों की चपल कामुक क्रीड़ाएं शुरू हो जाती हैं।
बता दें कि हेंताई एक जापानी मूल का शब्द है। इसका मौजूदा अर्थ इसके मूल अर्थ से खासा भिन्न है। आज पूरी दुनिया में हेंताई का मतलब ऐसी एनिमेटेड सामग्री से लिया जाता है जो विकृत सेक्स किरदारों और कथानकों की काल्पनिक दुनिया से जुड़ा है। हेंताई आज पोर्न मार्केट को लीड कर रहा है और इसका प्रसार जापान, चीन और अमेरिका में तो है ही भारत सहित कई एशियाई और यूरोपीय देश में भी इसका प्रसार तेजी से बढ़ रहा है। जापान में हेंताई को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटकर देखा जाता है। ये श्रेणियां हैं यॉई और यूरी। याई के तहत होमोसेक्सुअल और यूरो के तहत हेट्रोसेक्सुअल एनिमेटेड फिक्शन या फैंटेसी आते हैं। साफ्ट पोर्न की कैटेगरी को एक्की कहते हैं। इसी तरह बाकूनयू कैटगरी में वैसे कार्टून किरदारों की कामुक क्रीड़ाएं और कथाएं शामिल की जाती हैं जिनके स्तन बड़े-बड़े होते हैं। इनसेक्ट एक और कैटेगरी है जिसमें एक ही घर या परिवार के सदस्यों के बीच के सेक्सुअल रिलेशन को बताया जाता है।
दिलचस्प है कि हेंताई की दुनिया चूंकि पूरी तरह काल्पनिक या वच्र्युअल है इसलिए यहां कुछ भी असंभव नहीं है। आमतौर पर जैसे बाकी कार्टून किरदारों की दुनिया में कोरी कल्पना से रोमांच और हास्य पैदा किया जाता है, वैसे ही यहां भी कई रंग-रूप और आकार के किरदारों के साथ घोस्ट और रोबोट तक कहानी का हिस्सेदार होते हैं। अलबत्ता यह जरूर है कि विषयवस्तु चूंकि सेक्स आधारित है इसलिए कल्पना और फैंटेसी की सारी उड़ान की परिणति आखिरकार एक तरह की क्रूरता और फूहड़ता में होती है। यहां कुछ भी असंभव नहीं है। आपको कभी अलग-अलग प्रकृति और आकार के किरदारों के यौन संसर्ग देखने को मिलेंगे तो कभी जननांगों के अस्वाभाविक रूप आपको इस दुनिया की विचित्रता से अवगत कराएंगे।
शोध अध्ययनों में यह बताया गया है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हेंताई को एनिमेटेड सेक्सुआल फेंटैसी के रूप में भुनाने में बाजार की कई ताकतें सक्रिय हुईं। आज हेंताई का विश्व बाजार अरबों डॉलर का है और यह कॉमिक बुक, एनिमेटेड फिल्म से लेकर खिलौनों और कंप्यूटर व मोबाइल वालपेपर और स्क्रीन सेवर तक कई रूपों में अपने चाहने वालों की संख्या बढ़ा रहा है। भारत में हेंताई का चलन अभी नया है। पर इंटरनेट ने इसकी पहुंच के दरवाजे जिस तरह खोले हैं, उससे इस खतरे के बढ़ने के आसार कितने ज्यादा हैं, यह समझा जा सकता है। हेंताई की लोकप्रियता के पीछे एक बड़ी वजह इसका रियल की जगह वच्र्युअल होना है। इसके वच्र्युअल होने के कारण पोर्न मैटेरियल के रूप में इसका इस्तेमाल करने वालों को कोई गिल्टी भी नहीं होती है। और यही कारण है कि हेंताई को पसंद करने वालों में बच्चों-किशोरों के साथ बड़ी तादाद में व्यस्क भी शामिल हैं।
बहरहाल, इतना तो साफ है कि बाजार के वर्चस्व के दौर में इस खतरे को कोई नहीं समझ रहा है कि विशुद्ध कामुकता का यह ओवरडोज हमारे बच्चों के साथ किशोरों और युबाओं के विकास को कितना और किस-किस स्तर पर प्रभावित करेगी।

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नग्न होना, दिखाना
पोस्टेड ओन: 6 Jan, 2012 
http://manoranjanthakur.jagranjunction.com
नग्नवाद व सेक्स आज खूब बिक रहे हैं। लिहाजा इसे परोसने की तमाम हदें पार होती दिख रही हैं। लोगों को भाने व ललचाने की चिकनाहट में मर्यादा, वंदिश व उम्र भी कोई मायने नहीं रख रहे। बस जिद यही, यह आंखों को ललचाए, सुकून, शांति दे और शरीर में सनसनी, गर्मी का एहसास। नसों में दौड़ती लहू के रंग भी अगर लाल की जगह सुर्ख सफेद हो जाए तो हर्ज नहीं शर्त इतना कि सेक्स की मादकता का फुल डोज मिले और नग्नवाद उसपर जोश के साथ लबरेज, हावी हो। जिस संकोची मानसिकता के साथ चोरी छिपे, कपड़ों, आलमीरों में छुपा, ढककर, आवरण में लपेटे, फुर्सत के क्षणों में अकेले, एकांत कोने में चुपचाप, गुम, नग्नवाद को, उस खुलेपन, अद्र्धनग्न, नग्नता को खुले नेत्रों से निहारते, घंटों मन ही मन बतियाते, उसे चूमते, छूने का स्पर्श भाव लिए मदमस्त होते लोग हर कोने में मिलते रहे हैं उसका फलसफा आज बदल गया है। लोग अब संकोची दरों-दीवार से ऊपर, तमाम परत के बाहर उस सार्वजनिक मोड़ पर सबके सामने नग्न और बेशर्म खड़े हैं जहां खुद व खुद जवानी का अहसास हो जा रहा है। गली की छोटकी भी अब खुद को छूने से मना करती चिकनी चमेली बन गयी है।
लज्जा, हया, बेशर्मी की तमाम बाधाओं, शंकाओं, सीमाओं के पार लोग उस
चरित्र को जी, आत्मसात कर रहे हैं जहां नंगापन दिखाना, सोचना, नंगा होना, खुलापन, दैहिक, लाज, शर्म पुरानी बातें हो गई हैं। आज स्त्री चरित्र क्या, मर्दाना शक्ति, ताकत भी बाजारवाद का अहम व निर्णायक हिस्सा में शुमार है। आदिकाल से महिलाएं जिस दैहिक विमर्श को आत्मसात, प्रमोट, विस्तारित कर बढ़, आगे निरंतर साक्षात्कार कर रही हैं। उस क्रम में आवरण उतारकर बालाओं को ललचाने की जमकर फरोशी पुरुष भी करने लगे हैं। घरों में छोटे पर्दे पर एक मंच के कोने में लाइट व सॉवर में नहाते, रंगीन मदहोश कर देने वाली साज-सज्जा के बीच नग्न पुरुष के साथ अदा बिखेरती मनचली हसीनाओं में उत्तेजना खोजते मैंटरों को देखिए। उनकी चहकती आंखें, देह
को टटोलती, विमर्श करती उस खेल को सबके सामने प्रवाहित, विस्तारित कर देते हैं जिसके बहाव, ठहराव में एक टक उस खुले बदन, संपूर्ण नारी देह को देखना उपभोक्ताओं के लिए मजबूरी से आगे शौक, जरूरत में समाहित हो गया है। वैसे, कमसिन अदाकार, हसीनाएं तो कॉपी राइट, अधिकार, हथियार में ही इसे शुमार कर चुकी हैं। बिना जिस्म दिखाए टीआरपी क्या योग व व्यायाम नहीं हो रहे। नग्नवाद आज योजनाबद्ध तरीके से लोगों के दिमाग में परोसे जा रहे हैं। निर्वस्त्र लोहान की तस्वीर के कवर वाली प्लेबॉय ने बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ डाले। जब बाजार में खरीददार उसी तबके के हों तो उत्पाद भी वैसा ही मनलायक, भरोसे को तरोताजा रखने वाला होना ही चाहिए। इससे उपभोक्ताओं को क्या मतलब कि हालीवुड हसीना लिंडसे लोहान परेशानियों में घिरी हैं। बाजार का सीधा संबंध उस देह से है जो उसने निर्वस्त्र होकर पूरी कर दी। नग्नता कोई चीज नहीं महज आंखों का धोखा है। और इसी भ्रम व फरेब में लोग सनसनी तलाश रहे हैं। ब्याय फ्रेंड से अश्लील एमएमएस व न्यूड फोटोग्राफ हासिल करने के लिए प्रेमिका को उससे शादी करनी पड़ती है। इतना ही नहीं, कहानी का क्लाइमेक्स यह कि दोनों के बीच के शारीरिक संबंध की तस्वीर प्रेमी ने जिस स्टॉइल व चोरी से खींच ली थी उसी मिजाज से शादी के चंद दिनों बाद प्रेमिका उस नग्न फोटो को साथ लेकर गायब भी हो जाती है। नग्नवाद का द एंड तब होता है जब गम में तन्हा प्रेमी खुदकुशी को घर बुला लेता है।
भारत सेक्स का वैसे भी बड़ा बाजार हो गया है। यहां संभ्रात व पारिवारिक रेस्ट्रों में अंधेरा, तन्हाइ व जिस्म खूब बिक रहे हैं। एक रेस्टोरेंट में एक घंटे तक जोड़े महज 135 रुपये में इन घुप तन्हाइ को आराम से खरीद रहे हैं जहां शक की गुजांइश भी बेमानी है। हां, 99 साल का एक बुजुर्ग अपनी पत्नी से इसलिए तलाक लेना चाहता है कि उसे अब पता चला है कि उसकी 96 साला पत्नी का 70 साल से ज्यादा समय पूर्व किसी के साथ अफेयर था। बात यहीं खत्म नहीं होती। कट्टरपंथी मुस्लिम राष्ट्रों में सेक्स शब्द पर खुलेआम चर्चा की इजाजत, जायज नहीं है लेकिन इंटरनेट पर नग्नता को खोजने वालों में सबसे ज्यादा पाकिस्तानी ही आगे हैं। दोहरे चरित्र को जी रहे वहां के लोग भारत से एक नंबर ज्यादा, विश्व में पहले पायदान पर हैं जहां सेक्स की चाह इंटरनेट से परोसी जा रही है। रेलवे स्टेशनों पर लाल रंग की परत, कागज के अंदर से झांकता देह, अजन्ता का कोक व कामशास्त्र कितनी आंखों के सामने से हर रोज यूं ही गुजर जाती है गोया किसी ने वियाग्रा से अपने बीमार दिल का इलाज करा लिया हो।

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