इन्टरनेट को नग्नता,कामवासना और विकृति का विकरण बनने से रोकना है.....



-- अरविन्द सिसोदिया 
भारत सरकार के मानव संसाधन और दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल और कांग्रेस पार्टी विषेश कर गूगल,फेसबुक और टिवीटर आदि पर नाराज इसलिये है कि उन पर अपलोड सामग्री श्रीमति सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह , कांगेस महासचिव दिग्विजय सिंह,  महासचिव महसचिव राहुल गांधी सहित स्वंय कपिल सिब्बल के विरूपित चित्र एवं असंसदीय भाषा युक्त सामग्री से भरे पढे है। जब देश में अन्य कोई केन्द्र सरकार होगी तब यही सब उनके खिलाफ भी होगा। क्योंकि आम मीडिया में जनता या बु़द्धजीवी वर्ग की बात को सुनने और उसे जगह देने के सभी रास्ते बंद है और इस स्थिती में अपने मनोभावों को उतारने का यह सबसे आसान तरीका है। राजनैतिक समझदारी तो यह होती कि हम यह सब क्यों हो रहा है, इसे समझनें की कोशिस करते। और एक बहस के साथ बढिया कानून बनाते जो जनहितकारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता और स्वच्छंदता को रोकता। मगर जब डंडे से काम चल सकता है तो समझाईस या गलत फैंसलों पर पुर्न विचार क्यों करें। इसी सि़द्यांत का अनुगमन केंन्द्र सरकार कर रही है। कमजोर कानून के कारण सोसल साइटों ही नहीं, हमारे फिल्मकार और चैनल संस्कृति भी स्वच्छंद है।
       केन्द्र सरकार के कुछ नीतिकार अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलनों की सफलता का करण भी इन सोसल साइटों और मीडिया को मानते है। साथ ही सरकार को यह भी डर है कि इन माध्यमों से होने वाली सूचनाओं और संदेशों के आदान - प्रदान से देश में कहीं अन्य देशों में हुई हालिया जनक्रांतियों की तरह कोई तूफान न आ जायें। इसीलिये इस दिशा में उन्होने मोबाईल से बल्क एस एम एस के असंख्य प्रसारण पर रोक लगा दी और इसी तरह से अब वह गूगल , फेसबुक औ टिवीटर सहित अन्य पर भी सिकंजा कसने वाली है। यह इसी क्रम में होने वाली कार्यवाहियों में से एक है। जबकि एक व्यवहारिक और स्पष्ट कानून का अभाव आज तक भी है कि समाज में क्या  दिखाया जाये और क्या नहीं दिखाया जाये। यानिकि स्पष्ट दिशा निर्देशों की जरूरत तो है मगर वह इसलिये नहीं कि आज कांग्रेस के विरूद्ध माहोल है..., बल्कि इसलिये कि वास्तविकता में नग्नता और सामाजिक विकृति का अखाडा इन्टरनेट बन गया है। अर्थात भारत में इन्टरनेट को नग्नता,कामवासना और विकृति का विकरण बनने से रोकना है। इसलिये इन पर बाध्यता की जरूरत है।

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फेसबुक, गूगल पर क्रिमिनल केस चलाने को सरकार तैयार
आईबीएन-7/ Jan 13, 2012 
http://khabar.ibnlive.in.com
            नई दिल्ली। पहली बार भारत सरकार ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कार्रवाई करने की इजाजत दे दी है। सरकार ने इस मामले में आपराधिक मामला दर्ज करने की अनुमति दी है। इसके तहत सोशल साइट्स पर सेक्शन 153B, 295 A यानी धार्मिक भावनाएं भड़काने का मामला दर्ज हो सकता है। सरकार ने पटियाला हाउस कोर्ट में चल रही इस मामले की सुनवाई के दौरान अपना ये पक्ष रखा।
            गौरतलब है कि अपनी वेबसाइट पर आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने के मामले में 21 सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत ने सुनवाई चल रही है। अदालत ने आज मामले की सुनवाई 13 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। साथ ही विदेश मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह विदेशी नेटवर्किंग साइट्स को इस सम्बंध में सम्मन जारी करे। अदालत ने विनोद राय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया, जिसमें अदालत से 21 वेबसाइट्स पर से आपत्तिजनक सामग्री हटाने की अपील की गई है। इनमें 12 वेबसाइट विदेशी कम्पनियों की हैं।
             वहीं, अदालत में मौजूद फेसबुक, गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, याहू इंडिया और अन्य वेबसाइट्स के प्रतिनिधियों ने इस आधार पर छूट मांगी कि यह मामला अभी दिल्ली उच्च न्यायालय में लम्बित है और इस पर सोमवार को सुनवाई होने वाली है। इससे पहले महानगरीय दंडाधिकारी सुदेश कुमार ने आरोपी कम्पनियों को मुकदमे के लिए सम्मन जारी किया था। साथ ही केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस सम्बंध में उचित कदम उठाए।

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सोशल नेटवर्किंग साइटों को सम्मन जारी
शुक्रवार, 13 जनवरी, 2012 को 17:19 IST तक के समाचार
http://www.bbc.co.uk/hindi/india
दिल्ली के एक कोर्ट ने गूगल और फ़ेसबुक जैसी विभिन्न विदेशी सोशल नेटवर्किंग साइटों को सम्मन जारी कर कहा है कि वे अपनी साइटों पर आपत्तिजनक सामग्री को बढ़ावा देने के लिए आपराधिक मामले का सामना करे. इन कंपनियों के प्रतिनिधियों को आगामी 13 मार्च को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया गया है.
            समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ कोर्ट ने विदेश मंत्रालय से कहा है कि वो इन कंपनियों को सम्मन जारी करवाए.कोर्ट ने ये आदेश तब दिया जब ‘फ़ेसबुक इंडिया’ के वकील ने कहा कि 21 कंपनियों में से क़रीब 10 कंपनियां विदेशी हैं और कोर्ट को ये साफ़ करना होगा कि उन्हें सम्मन कैसे जारी किया जाएगा. दरअसल पत्रकार विनोद राय ने फ़ेसबुक और गूगल जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों के ख़िलाफ़ कोर्ट में केस दर्ज किया था.उनका आरोप है कि फ़ेसबुक, माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल, याहू और यू-ट्यूब पर आपत्तिजनक सामग्री लगाई जाती है.
कंपनियों को फटकार 
         कोर्ट ने विदेश मंत्रालय से कहा है कि वो इन कंपनियों को सम्मन जारी करवाए.गुरूवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक इंडिया और सर्च इंजन गूगल इंडिया को चेतावनी दी थी कि अगर ये वेबसाइट्स आपत्तिजनक सामग्रियों पर नियंत्रण और उन्हें हटाने की व्यवस्था नहीं करतीं, तो चीन की तरह भारत में इन पर रोक लगाई जा सकती है.
          इन कंपनियों का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लगाई जाने वाली सामग्रियों पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता और वे उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती. लेकिन कोर्ट ने इन कंपनियों को फटकार लगाई और कहा कि कंपनियों को उनकी साइटों पर लगने वाली सामग्री पर नियंत्रण करना ही होगा, अन्यथा चीन की तरह भारत में भी इन साइटों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. मैट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट सुदेश कुमार ने कहा, “विदेशी कंपनियों को सम्मन जारी करने का काम विदेश मंत्रालय को विधिवत करने दीजिए.”
कोर्ट में सुनवाई के दौरान ‘फ़ेसबुक इंडिया’ के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मामले को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया जाए क्योंकि मामला अभी दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है. उन्होंने कहा कि फ़ेसबुक के चेयरमेन इस समय अमरीका में है और उन्हें सम्मन जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय को आदेश दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने इससे पहले केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वो इस बाबत उचित कदम उठाए. इसके जवाब में संचार और सूचना प्रेद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि वे शुक्रवार को ही अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर देंगें.
          पिछले साल मानव-संसाधन और दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि अमरीकी इंटरनेट कंपनियाँ सोशल नेटवर्क वेबसाइटों से ‘अपमानजनक’ तस्वीरों और सामग्री को हटाने में सहयोग नहीं कर रही हैं. सिब्बल ने कहा था कि उन्होंने याहू, गूगल और फ़ेसबुक जैसी कंपनियों के अधिकारियों से इस बारे में बार-बार बात की, लेकिन उनकी ओर से कहा गया कि जब तक इस बारे में अदालत का कोई फ़ैसला नहीं आता, वो इस बारे में कुछ नहीं कर सकते.

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