भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ :23 मार्च 2012 से




- अरविन्द सिसोदिया 

हिन्दू भारतीय नववर्ष:२३  मार्च २०१२  से ... Hindu Bharatiya New Year 
नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् २०६९ , युगाब्द ५११५ ,शक संवत् १९९५  तदनुसार  २३  मार्च २०१२ , इस धरा की १९५५८८५११३ वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ...
१. भगवान राम का राज्याभिषेक, 
२. युधिष्ठिर संवत की शुरुवात, 
३. विक्रमादित्य का दिग्विजय, 
४. वासंतिक नवरात्र प्रारंभ, 
५. शिवाजी की राज्य स्थापना, 
६. डॉ. केशव हेडगेवार का जन्मदिन 
ईश्वर हम सबको ऐसी इच्छा शक्ति प्रदान करे जिससे हम अखंड माँ भारती को जगदम्बा का स्वरुप प्रदान करे, धरती मां पर छाये वैश्विक ताप रुपी दानव को परास्त करे... और सनातन धर्म का कल्याण हो..
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भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ :23 मार्च 2012 से
- सिमरन  कुमारी 
एक जनवरी के नजदीक आते ही जगह-जगह हैप्पी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लगने लगते हैं। मैकाले प्रणीत शिक्षा पद्वति के ढ़ांचे में पले- बढ़े ये काले अंग्रेज सदैव पाश्चात्य नव वर्ष का स्वागत करने की तैयारी करते रहने में अपनी शान समझते हैं।
ईसाई समाज 1 जनवरी को नव वर्ष मनाता है।
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुस्लिम समाज का नया साल हिजरी शुरू होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 22 मार्च 2012 को रात 7.10 बजे { अर्थात २३ मार्च के सूर्योदय से } विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ कन्या लग्न में होगा। इस वर्ष विश्वावसु नाम का संवत्सर रहेगा, जिसका स्वामी राहु है। इस वर्ष का राजा और मंत्री शुक्र है साथ ही दुर्गेश का पद भी शुक्र के ही पास है।
पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित कालदर्शक को कहते हैं।पंचांग हिन्दुओं को काल अथवा समय के धार्मिक एवं आध्यात्मिक पक्षों के आधार पर कार्य आरम्भ करने की जानकारी देता है ।
चूंकि हमारा राजकीय कैलेंडर ईसवी सन् से चलता है इसलिये नयी पीढ़ी तथा बड़े शहरों पले बढ़े लोगों में बहुत कम लोगों यह याद रहता है कि भारतीय संस्कृति और और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला विक्रम संवत् देश के प्रत्येक समाज में परंपरागत ढंग मनाया जाता है।
देश पर अंग्रेजों ने बहुत समय तक राज्य किया फिर उनका बाह्य रूप इतना गोरा था कि भारतीय समुदाय उस पर मोहित हो गया और शनैः शनैः उनकी संस्कृति, परिधान, खानपान तथा रहन सहन अपना लिया भले ही वह अपने देश के अनुकूल नहीं था।
अंग्र्रेज चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अंग्रेज वह कौम है जिसको बिना मांगे ही दत्तक पुत्र मिल जाते हैं जो भारतीय माता पिता स्वयं उनको सौंपते हैं।
सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं।
दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था। आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास:
दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज......आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।
किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।
पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था।
1. - एकाम्बर ( 31 )
2. - दुयीआम्बर (30)
3. - तिरियाम्बर (31)
4. - चौथाम्बर (30)
5.- पंचाम्बर (31)
6.- षष्ठम्बर (30)
7. - सेप्तम्बर (31)
8.- ओक्टाम्बर (30)
9.- नबम्बर (31)
10.- दिसंबर ( 30 )
11.- ग्याराम्बर (31)
12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।
इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे।
जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31),
अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।
फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए।
राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया।
एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।
मेरा आप सभी हिन्दुस्थानियों से निवेदन है कि - नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव वर्ष प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें .....!!
जागो भारतीय जागो

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