देवर्षि नारद जयन्ती : सत्य के पक्ष में प्रखरता से खडा होना ही पत्रकारिता की कसौटी



देवर्षि नारद जयन्ती
सत्य के पक्ष में प्रखरता से खडा होना ही पत्रकारिता की कसौटी
फेसबुक,टिविट्र और सोसल साईडों ने अभिव्यक्ति के नया मंच उपलब्ध करवाया है।
कोटा 7 मई। सम्पूर्ण विश्व के प्रथम पत्रकार देवर्षि नारद की जयन्ती को,राष्ट्रचेतना अभियान समिति कोटा महानगर की ओर से ” विश्व पत्रकारिता दिवस “ के रूप में मनाया गया। मानव विकास भवन, कोटा में सोमवार सायं 6 बजे आयोजित विचार गोष्ठी में देवर्षि नारद को पत्रकारिता तथा सूचना प्रौद्योगिकी का जनक बताते हुये नारदजी के चरित्र पर प्रकाश डाला और उन्हे विश्व का प्रथम पत्रकार बताते हुये, उनके जीवन और परमार्थ से जुडे दृष्टांत सुनाये।
गोष्ठी में कहा गया कि देवर्षि नारदजी का चरित्र सत्य जानने,सत्य को बताने और सत्य से परे न जाने की प्रतिबद्धता के साथ - साथ, धर्म और समाज के हितैषी के रूप में प्रगट होता है। जो कि वर्तमान संदर्भों में भी अनुकरणीय है।
विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा देशहित सर्वोपरी के रूप में भारतीय पत्रकारिता ने मिशाल कायम की है। और वह लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ के रूप में समाजसेवा में अपना विशिष्ट स्थान कायम करने में सफल रही हे। स्वच्छ लोकतंत्र की कल्पना भी पत्रकारिता के बिना संभव नहीं हें।
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा आज मीडिया के नये मंच भी हमारे सामने आये हैं फेसबुक,ब्वििटर और सोसल साईडों की लोकप्रियता ने आत व्यक्ति की अभिव्यक्ति को नया मंच दे दिया हे। जो जनता की आचाज का सशक्त माध्यम बन चुका हे।
वक्ताओं ने चिन्ता व्यक्त की कि भारतीय पत्रकारिता को विदेशी ताकतें अपने धनबल से निहित स्वार्थों हेतु कब्जे में करने के कुप्रयास कर रहीं हैं। जिन्हे सफल नहीं होने देना है। वहीं इसे व्यापारीकरण से बचाना हे। विचार गोष्ठी का संचालन राष्ट्र चेतना अभियान समीति के महानगर संयोजक महेश शर्मा ने किया।
विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रहलाद गोस्वामी , गोस्वामी आभा के सम्पादक और अध्यक्षता अरविन्द सीसौदिया स्वतंत्र पत्रकार व लेखक ने की तथा डॉ. हरीशंकर शर्मा,नेता खण्डेलवाल, बाबूलाल रैनवाल,महेश शर्मा, केवल कृष्ण बांगड, हसमुख पतिरा, हरिहर गौत्तम, श्याम गौड़, राकेश चतुर्वेदी, जितेन्द्र त्यागी आदी ने अपने विचार व्यक्त किये।
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पत्रकार दिवस (नारद जयंती) की हार्दिक शुभकामनाये।
नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र(जिसे <न् द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:नारद-पाञ्चरात्र">नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी,स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात,गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।
इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य,क्रतु, पुलह,प्रत्यूष,प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण,पुलहके पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षिके रूप में केवल नारदजी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं.---------

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पत्रकारिता सैन्य कार्य से दुष्कर-गोपाल शर्मा

     उदयपुर, 6 मई, ‘‘पत्रकारिता’’ निश्चित रूप से एक दुष्कर कार्य है इस दुष्कर कार्य के सम्पादन में नारद जी जैसी निर्भीकता एवं सत्य निष्ठा होनी चाहिए। कंस जैसे व्यक्ति के सामने अगर किसी को कहने का साहस था तो वह नारद जी को। विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित देवर्षि नारद जयंति के अवसर पर आयोजित पत्रकार सम्मान समारोह में बोलते हुए उपर्युक्त विचार महानगर टाईम्स के सम्पादक गोपाल शर्मा ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। भारत की पत्रकारिता को विश्व की पत्रकारिता से भिन्न बताते हुए उन्होने कहा कि भारत में पत्रकारिता की परम्परा राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ी हुई है। भारत में पत्रकारिता ने जनमत एवं राष्ट्र निमार्ण का अनूठा कार्य किया हैं पत्रकारिता के क्षेत्र में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, भगत सिंह, वीरसावरकर एवं मदनमोहन मालवीय के योगदान की चर्चा करते हुए शर्मा ने कहा कि जन चेतना एवं स्वाधीनता की अलख जगाने का जो अद्भुत एवं उल्लेखनीय कार्य इनके पत्रों के माध्यम से हुआ, अगर वह नही होता तो स्वतन्त्रता का लक्ष्य प्राप्त करना निश्चित ही ज्यादा दुष्कर होता। स्वतन्त्रता उपरांत भारत में रामकृष्ण डालमिया एवं रामनाथ गोयनका जैसे विदवत्जनो ने पत्रकारिता के लक्ष्य को साकार करने में असीम योगदान दिया हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. परमेन्द्र दशोरा ने कहा कि पत्रकारिता एक मोर्चा है, अभियान है, लक्ष्य  है, मिशन है, आजीविका नहीं है। सच्ची पत्रकारिता वह संवाद है जिससे समाज का सम्वर्द्धन होता है । अन्याय, अत्याचार, अनीति एवं दुराचारों पर प्रभावी नियन्त्रण पत्रकारिता के द्वारा ही हो सकता है।
विश्व संवाद केन्द्र द्वारा प्रतिवर्ष की भांति आयेाजित पत्रकार सम्मान समारोह में इस बार उदयपुर जिले के गा्रमीण क्षेत्र में कार्य कर रहे पत्रकारो का सम्मान किया गया जिसमें दैनिक भास्कर के श्री मनोज व्यास (चावण्ड), श्री निखिल कोठारी (गोगुन्दा), श्री धरणेन्द्र जैन (खेरवाड़ा), राजस्थान पत्रिका से श्री भूपेश चाष्टा (सलूम्बर), श्री मदन सिंह राणावत (झाड़ोल), श्री लोभचन्द बंजारा (फतहनगर), प्रातः काल से श्री कनक प्रसाद चौबीसा (भीण्डर), श्री पंकज पालीवाल (गोगुन्दा), दैनिक नवज्योति से श्री राजेश कुमार पंचोली (ऋषभदेव), जागरूक टाईम्स एवं अपराह टाईम्स से श्री नानालाल आचार्य (गिर्वा) एवं ई टीवी से श्री मनिष दाधीच (मावली) और मुकेश पुरोहित (झाडोल) को पत्रकारिता क्षेत्र में उल्लेखनिय योगदान के लिए अतिथियों द्वारा प्रशस्ति पत्र, स्म्ति चिन्ह एवं ओपरणा व श्रीफल भेट कर सम्मानित किया गया।
समारोह का संचालन डॉ. लक्ष्मीलाल शर्मा ने किया, अतिथि स्वागत एवं परिचय विश्व संवाद केन्द्र प्रभारी कमल प्रकाश ने करवाया इस अवसर पर विश्व संवाद केन्द्र का परिचय डॉ. सुभाष भार्गव ने दिया। कार्यक्रम परिचय डॉ. सुरेन्द्र झाखड़ ने करवाया, काव्यपाठ श्री कैलाश चन्द्र ने एवं वन्द्रेमातरम् श्री प्रभात आमेटा ने किया। संवाद केन्द्र के व्यवस्थापक  भारत भूषण ने सम्मानित होने वाले पत्रकारों का परिचय एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।

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"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।