उठ जाग मुसाफिर भोर भई





उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है

खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...

जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...

नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का प्रमाण

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है

भाजपा का संकल्प- मोदी की गारंटी 2024

हम भाग्यशाली हैं कि मोदी जी के कार्यकाल को जीवंत देख रहे हैं - कपिल मिश्रा

रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

नेशन फस्ट के भाव से सभी क्षेत्रों में अपनी अग्रणी भूमिका निभाएं - देवनानी