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सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों का एकीकरण : विश्व इतिहास का आश्चर्य

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शत शत नमन , सरदार वल्लभ भाई पटेल,आज उनकी जयन्ति है। सरदार वल्लभ भाई पटेल (31 अक्तूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्हे भारत का 'लौह पुरूष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। सरदार पटेल ने पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण  5 जुलाई, 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती

केजरीवाल के पीछे : कहीं विदेशी करेंसी ( धन ) का खेल तो नहीं

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केजरीवाल के पीछे : कहीं विदेशी करेंसी ( धन ) का खेल तो नहीं अन्ना आंदोलन को धूलधूसरित कर अपनी धधकती इच्छाओं की ज्वालामुखी में देश के ‘लोकतंत्र’ के प्रति अविश्वास पैदा करने की साजिश में लगी अरविंद केजरीवाल की टीम निश्चित ही उन लोगों के इशारे पर खेल रही है जिसे भारतमाता से प्यार नहीं है। केन्द्र सरकार को इस आशय की गंभीर छानबीन करनी चाहिए। केजरीवाल का खेल करेंसी का हो सकता है। अब जानना यह है कि यह करेंसी भारत की है या फिर भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों की। ‘सुपारी’ किसने दी है यह पता तो डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को लगाना ही चाहिए। ‘केजरीवाल’ को शायद यह नहीं पता कि जिस दिन उन्होंने राजनीति में आने और चुनाव लड़ने की घोषणा की उसी दिन उसका सेंसेक्स लुढका ही नहीं, जमीन पर आ गया। स्थिति ध्ाीरे-ध्ाीरे स्पष्ट होती जा रही है। मुझे ध्यान है कि एक दिन अन्ना ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में कहा था कि इन्हें तो पूना भेज देना चाहिए। लेकिन आज हम कहना चाह रहे हैं कि अन्ना ‘‘अरविंद केजरीवाल’’ को कहां रखना चाहेंगे! कहा जाता है कि व्यक्ति को अपने गुणों से सम

शहीद कारसेवको शत-शत नमन : 30 अक्टूबर 1990

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अयोध्या आन्दोलन को जानने के लिये अवश्य पढे़ याद रहे कारसेवक शहीदों का बलिदान    !! 30 अक्टूबर 1990 !! कुंवर ऋतेश सिंह (विश्व हिन्दू परिषद्) आज ही के दिन अयोध्या में मुल्ला-यम सरकार ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलिया चलवाई थी जिसमे ६ कारसेवक शहीद हो गए थे. आइये अब आप सब को बताते है की उस दिन अयोध्या में हुआ क्या था ??? ३० अक्टूबर १९९० को विश्व हिन्दू परिषद् ने गुम्बद नुमा ईमारत को हटाने के लिए कारसेवा की शुरुआत की. आल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ,कांग्रेस पार्टी,मार्क्सवादी पार्टी और कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के द्वारा इस कारसेवा को समूचे विश्व में मस्जिद के लिए खतरा बताया गया. जबकि ये सर्वविदित है की अयोध्या "राम लला" की जन्मस्थली है और उस जन्मस्थली को तोड़कर वह एक अवैध मस्जिद नुमा ईमारत का निर्माण किया गया था. परन्तु मुस्लिम वोटो के लालच में तत्कालीन प्रधानमंत्री "विपी सिंह" और उस समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री "मुल्ला-यम सिंह" मस्जिद बचाने की दौड़ में शामिल हो गए. लगभग ४० हजार CRPF के जवान और

ख़म ठोक ठेलता हे जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड

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श्री कृष्ण का दूत कार्य (समय निकाल कर अवश्य पड़े ) हे कौन विघ्न ऐसा जग में,टिक सके आदमी के मग में | ख़म ठोक ठेलता हे जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड ||१ || मानव जब जोर लगाता हे, पत्थर पानी बन जाता हे | गुण बड़े एक से एक प्रखर ,हे छिपे मानव के भीतर ||२|| मेहंदी में जैसे लाली हो , वर्तिका बीच उजियारी हो | बत्ती जो नहीं जलाता है रौशनी नहीं वो पता हे ||३|| पीसा जाता जब इक्षुदंड बहती रस की धरा अखंड | मेहंदी जब सहती प्रहार बनती ललनाओ का श्रृंगार ||४|| जब फूल पिरोये जाते है हम उनको गले लगाते है | कंकड़िया जिनकी सेज सुघर छाया देता केवल अम्बर ||५|| विपदाए दूध पिलाती है लोरी आंधिया सुनाती है | जो लाक्षाग्रह में जलते है वही सूरमा निकलते है ||६|| वर्षो तक वन में घूम घूम , बाधा विघ्नों को चूम चूम | सह धुप छाँव पानी पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर ||७|| सोभाग्य न सब दिन सोता है, देखे आगे अब क्या होता है | मैत्री की रह बताने को सबको सुमार्ग पर लाने को ||८|| दुर्योधन को समझाने को भीषण विध्वंश बचाने को | भगवान हस्तिनापुर आये पांडवो का संदेशा लाये | दो न्याय अगर तो आधा दो पर इसमे भी यदि बाधा हो | दे दो ह

जाग्रत , आरोग्य और अमरत्व : शरद पूर्णिमा

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Published on 28 Oct-2012 dainik Bhaskar जाग्रत , आरोग्य और अमरत्व  : शरद पूर्णिमा  - पं. विनोद रावल, उज्जैन http://epaper.bhaskar.com/Kota/16/28102012/0/1/ हिंदू पंचांग में १२ मास की १२ पूर्णिमा होती हैं। हर मास के समापन की तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। इनमें शरद पूर्णिमा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जो आश्विन मास की अंतिम तिथि है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। ज्योतिष की मान्यता है शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी १६ कलाओं से पूर्ण होता है। इसीलिए इस रात को चांदनी अपने संपूर्ण विस्तार तथा चंद्रमा अपने सौंदर्य के चरम पर होता है। मान्यता है कि इस रात्रि को चांदनी के साथ अमृत वर्षा होती है। यही कारण है कि अमरत्व और आरोग्य के लिए सभी को हर वर्ष इस पूर्णिमा का इंतजार रहता है। कोजागर पूर्णिमा शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागर पूर्णिमा भी है। इसका आशय है को-जागर्ति यानी कौन जाग रहा है। धार्मिक मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी श्वेत वस्त्र धारण कर संसार में विचरण करती हैं। यह उपासना, साधना व जागरण की रात है। देवी हर व्यक्ति के द्वार पर जाती हैं और पूछती है को जागर्ति। अर्थात कौन जाग रहा

फर्जी कंपनिया चला रहे सोनिया-राहुल : सुब्रमण्यम स्वामी

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यह आरोप है जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी के दम हो तो इन पर कांग्रेस मानहानी का दाबा  करके दिखाए। http://in.jagran.yahoo.com/news फर्जी कंपनिया चला रहे सोनिया-राहुल Oct 27, 06:36 pm अहमदाबाद [शत्रुघ्न शर्मा]। जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने काग्रेस और गाधी परिवार पर एक बार फिर हमला बोला है। स्वामी ने राहुल गांधी के स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख के पिक्टेट बैंक में खाता होने का सनसनीखेज खुलासा करने के साथ ही आरोप लगाया है कि गांधी खानदान ने विभिन्न देशों में दर्जनों फर्जी कंपनियों बनाई। अरबों का धन बटोरा फिर कंपनी बंद कर दी। कांग्रेस के धन से दिल्ली का हेराल्ड हाउस कौड़ियों के भाव खरीदा जिसकी बाजार कीमत 6 हजार करोड़ से अधिक है। सोनिया और राहुल आरोपों का जवाब देने की खुली चुनौती देते हुए स्वामी ने कहा, मां-बेटे अपने पदों से इस्तीफा दें। ऐसा न किया तो अदालत का दरवाजा खटखटाउंगा। इस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा भ्रष्टाचार विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करने अहमदाबाद आए सुब्रमण्यम स्वामी ने शनिवार को पत्रकार वार्ता में कहा, सोनिया,राहुल और प्रियंका के नाम पर 27 कं

11 days are simply missing from the month:Interesting History of September 1752

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Interesting History of September 1752 Hi everyone. Here are two interesting historical facts that you probably didn't know, (I sure didn't). Just have a look at the calendar for the month of September 1752 >>> cid:image003.gif@01CB6536.A3EBA580 (If you think I'm joking, you may search it on Google and see it for yourself.) In case you haven't noticed, 11 days are simply missing from the month. Here's the explanation: This was the month during which England shifted from the Roman Julian Calendar to the Gregorian Calendar. A Julian year was 11 days longer than a Gregorian year. So the King of England ordered 11 days to be wiped off the face of that particular month. (A King could order anything, couldn't he?) So the workers worked for 11 days less that month, but got paid for the whole month. That's how the concept of "paid leave" was born. Hail the King!!! In t

‘हिंदू समाज के लिए बोलनेवाला नेतृत्व इस देश में है कि नहीं?’– सरसंघचालक

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प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहनराव भागवत के श्री विजयादशमी उत्सव 2012  (बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन का सारांश- ‘हिंदू समाज के लिए बोलनेवाला नेतृत्व इस देश में है कि नहीं?’ – सरसंघचालक आज के दिन हमें स्व. सुदर्शन जी जैसे मार्गदर्शकों का बहुत स्मरण हो रहा है। विजययात्रा में बिछुड़े हुये वीरों की स्मृतियॉं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर, स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है। भारत की सिद्ध गुणवत्ता  यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 65 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखाया है। विज्ञान

नैमिषारण्‍य पवित्र् तीर्थस्थल

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***नैमिषारण्‍य पवित्र् तीर्थस्थल*** नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में गोमती नदी का तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थस्थल है। नैमि षारण्‍य में प्रवाहित होने वाली गोमती का नाम ऋग्‍वेद एवं ब्राम्‍हण- ग्रन्‍थों में मिलता हैं, महाभारत ग्रंथ में गोमती को सबसे पवित्र् नदी बताया गया है, स्‍कन्‍द पुराण के ब्रम्‍हाखण्‍डार्न्‍तगत धर्मारण्‍य महात्‍म के प्रंसग में गंगा आदि नदियों के साथ गोमती को पावन माना गया है, सभी पुराणों में गोमती की महिमा का बखान है, यह वैदिक कालीन नदियों में है, नैमि षारण्‍य गोमती के पावन तट पर विद्वमान है|         नैमिषारण्य का प्रायः प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है । पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया । महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल तक ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा- `इसे चलाते हुए चले जाओ। जहां इस चक्र की `नेमि' (बाहरी परिधि) गिर जाय, उसी स्थल को पवित्र

स्वामी विवेकानंन्द सार्धशति समारोह,कोटा,राजस्थान

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    और अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया लिंक भी देखें  http://150svhin.blogspot.in  

संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का उद्बोधन

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(बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012) विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प.पू. सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का उद्बोधन    (विजयादशमी,बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन - माननीय सरसंघचालक  मोहन भागवत जी    आज के दिन हमें स्व. सुदर्शन जी जैसे मार्गदर्शकों का बहुत स्मरण हो रहा है। विजययात्रा में बिछुड़े हुये वीरों की स्मृतियॉं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर, स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है। यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 65 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखा