नेता और जनता दोनों के मन में निस्वार्थ भाव से, देश का भाग्य बदल सकता है -प.पू. सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत





भोपाल, दिनांक 23 फरवरी 2014
प.पू. सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत द्वारा मॉडल स्कूल भोपाल में दिए उद्बोधन के अंश -
आज का समता व शारीरिक कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ | किन्तु यदि संतोष हो जाए तो उसका अर्थ होता है विकास पर विराम और अच्छा होने की कोई सीमा रेखा नहीं होती | किसी व्यक्ति, संस्था अथवा देश की सफलता के लिए भी यही द्रष्टि आवश्यक है | नेता के अनुसार चलने वाले अनुयाई भी आवश्यक हैं | रणभूमि में ताना जी मौलसिरे की मृत्यु के बाद यदि अनुयाईयों में शौर्य नहीं होता तो क्या कोंडाना का युद्ध जीता जा सकता था ? नेता और जनता दोनों के मन में निस्वार्थ भाव से बिना किसी भेदभाव के देश को उठाने का भाव हो तो ही देश का भाग्य बदल सकता है | संघ ने शाखा के माध्यम से घर घर, गाँव गाँव में शुद्ध चरित्र वाले, सबको साथ लेकर चलने वाले निस्वार्थ लोग खड़े करने का कार्य हाथ में लिया है | समाज का चरित्र बदले तो ही देश का भाग्य बदलेगा |
शारीरिक कार्यक्रम कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं है, हिन्दू समाज को शक्ति संपन्न बनाने के लिए हैं | आवश्यक गुण संपदा इन्हीं कार्यक्रमों से प्राप्त होती है | राष्ट्र उन्नति हो, दुनिया सुखी हो इसके लिए हर घर, गाँव शहर में यह मनुष्य बनाने का कार्य सतत, निरंतर, प्रखर, उत्कट होना चाहिए | जैसे लोटा रोज मांजा जाता है, उसी प्रकार स्वयं को भी रोज मांजना | यह नहीं मानना चाहिए कि मैं कभी मैला नहीं हो सकता | यह सब कार्यक्रम केवल कार्य के लिए | यंत्रवत नहीं श्रद्धा व भावना के साथ | कृष्ण की पत्नियों में रुक्मिणी पटरानी थीं | सत्यभामा को इर्ष्या हुई | नारद जी ने सुझाव दिया कि कृष्ण का तुलादान करो | न केवल सत्यभामा बल्कि सातों रानियों के सारे अलंकरण भी कृष्ण का पलड़ा नहीं उठा पाए | अंत में रुक्मिणी ने जब तुलसीदल डाला तब कृष्ण का पलड़ा उठा | वजन भाव का होता है | नेता सरकार सब बदलकर देख लिया, किन्तु परिश्रम और प्रामाणिकता नहीं इसलिए फल नहीं | भाव को उत्कट बनायेंगे तो परिश्रम अधिक होगा तथा पूर्णता की मर्यादा को हाथ लगा सकेंगे |


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य क्षेत्र बैठक भोपाल
भोपाल. 20 फरवरी | समाज की दृष्टि में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवर्तन का संवाहक है | समाज की यह दृष्टि संघ की साधना एवं तपस्या के कारण बनी है | आवश्यकता इस बात की है कि तदनुरूप अपने आचरण एवं व्यवहार से हम निर्णायक बल प्राप्त करें | यह आव्हान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प.पू. सर संघचालक श्री मोहनराव भागवत ने एलएनसीटी परिसर में आयोजित संघ के मध्यक्षेत्र की तीन दिवसीय क्षेत्रीय बैठक में विविध क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवकों से किया | इस अवसर पर क्षेत्र संघचालक श्री कृष्ण माहेश्वरी एवं क्षेत्र कार्यवाह श्री माधव विद्वांश भी उनके साथ मंचासीन थे | बैठक में 48 संगठनों के 410 स्वयंसेवक उपस्थित थे |
श्री भागवत ने कहा कि क्रान्ति के माध्यम से कुछ समय के लिए आंशिक उथल पुथल तो आ सकती है, किन्तु साथ ही उसके दुष्परिणाम भी सामने आते हैं | उन्होंने कहा कि देश को क्रान्ति की नहीं संक्रांति की आवश्यकता है जिसके लिए समाज को प्रवोधन करना होगा, जागरण करना होगा | देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को स्पर्श करते हुए श्री भागवत ने कहा कि इस देश की पहचान हिन्दू पहचान है और यही राष्ट्रीय पहचान है | जो इस पहचान से दूर होगा, वह मतांतरण का शिकार होगा | हिन्दू समाज का एक ही रोग है, वह है “हम” का विस्मरण | इस समाज को एक सूत्र में पिरोना ही युग धर्म है और संघ यही कार्य कर रहा है |
श्री भागवत ने कहा कि आज देश को मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है परन्तु यह तभी संभव है, जब हम सब व्यक्तिगत आग्रह दुराग्रह को दूर रखते हुए समाज में एक सकारात्मक वातावरण निर्माण करें | तीन सत्रों में चली इस बैठक में स्वयंसेवकों ने अपनी जिज्ञासाएं भी रखीं जिनका समाधान सरसंघचालक जी ने किया | पूर्व सरसंघ चालक श्री सुदर्शन जी की स्मृति में 600 पृष्ठीय “सुदर्शन स्मृति” ग्रन्थ सहित दो पुस्तकों का लोकार्पण भी इस अवसर पर सरसंघचालक जी ने किया |

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