कब तक बर्दाश्त करें पाकिस्तानी आतंक के दंश को ?'

कब तक बर्दाश्त करें पाकिस्तानी  आतंक के दंश को ?'
- सिद्धार्थ शंकर गौतम

30 जुलाई को मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन की प्रस्तावित फांसी, 26 जुलाई को कारगिल विजय का जश्न और सोमवार 27 जुलाई को तड़के पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर पुलिस थाने पर आतंकी हमला। देखने पर ये तीनों घटनाएं भले ही अलग प्रतीत हों किन्तु इनके बीच समानता की एक महीन लकीर नज़र आती है। याकूब मेनन की प्रस्तावित फांसी के विरोध में जिस तरह कथित बुद्धिजीवी पत्र लिखते हुए भारतीय न्याय व्यवस्था का मखौल उड़ा रहे हैं, उसे पूरी दुनिया देख रही है। क्या संभव नहीं कि याकूब के पाकिस्तानी आका भी उसकी फांसी पर देश के भीतर छिड़ी मजहब आधारित बहस का फायदा उठाना चाह रहे हों? क्या भरोसा कि पंजाब के आतंकी हमले को याकूब की फांसी से जोड़कर सियासतदां इस पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने लगें? हो सकता पाक समर्थित आतंकी संगठन याकूब की फांसी का बदला लेने का मंसूबा पाले हों जैसा उन्होंने कसाब की फांसी के बाद कहा और किया। वहीं 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के एक दिन बाद ही यह आतंकी हमला साबित करता है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन आज भी कारगिल पराजय को बुरे स्वप्न की तरह याद करते हैं और भारत को अस्थिर करना उनका मुख्य शगल बन चुका है।

ख़बरों के अनुसार आतंकी अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाना चाहते थे किन्तु रास्ता भटकने की वजह से 20 सालों बाद पंजाब की धरती को आतंक का पुराना मंजर ताजा करवा दिया। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो पंजाब में खून की होली खेलनेवाले आतंकियों के हमले का तरीका बिलकुल लश्कर-ए-तैयबा जैसा है जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये आतंकी पाकिस्तान के रास्ते भारत में दहशत फैलाने आए थे। हालांकि पाकिस्तान इस सच को कभी स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि पाकिस्तान में होनेवाली तमाम आतंकी घटनाओं को शरीफ सरकार द्वारा ऐसे पेश किया जाता रहा है, मानो पाकिस्तान खुद आतंकवाद से पीड़ित हो।

देखा जाए तो 1995 के बाद पंजाब में इस तरह के हमले नहीं हुए हैं। यह हमला बिल्कुल कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए जाने वाले हमलों के पैटर्न पर है। इसका जिक्र जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कर चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पंजाब में खालिस्तान समर्थित आतंकवाद फिर सिर उठा सकता है। 26 जुलाई को ही शिरोमणि अकाली दल (शिअद-अमृतसर) के कार्यकर्ताओं द्वारा एक कार्यक्रम में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के संबोधन के दौरान खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे जिसपर बादल ने सांप्रदायिक विभाजन और कट्टरपंथ के खिलाफ लोगों को आगाह किया था। ऐसा संभव है किन्तु ताजा हमला खालिस्तान समर्थित आतंकवादी हमला नहीं है। वैसे भी खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों का इतिहास फिदायीन हमले का नहीं रहा है। हां, इतना जरूर है कि खालिस्तान के कई नेता अभी भी पाकिस्तान में बैठे हैं और यह संभव हो सकता है कि गुरुदासपुर में हमले को अंजाम देने के लिए स्थानीय आतंकियों की मदद ली गई होगी। ऐसी भी खबरें हैं कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई भारत में खालिस्तान आंदोलन को फिर से उभारने में जुटी है। आतंकी हमले को लेकर एक और तथ्य उभर रहा है कि चूंकि कश्मीर में फिलहाल सुरक्षा चौक-चौबंद है और वहां मौका नहीं मिलने के कारण पंजाब को सॉफ्ट टारगेट के रूप में चुना गया हो। वैसे भी पंजाब का यह इलाका पाकिस्तानी सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर है।

पंजाब में आतंकी हमले ने हमारी सुरक्षा एजेंसियों की चूक को पुनः उजागर किया है वहीं सीमा पर घुसपैठ से भी इंकार नहीं किया जा रहा। क्या इस स्थिति में बदलाव आएगा? साफ़ दिख रहा है कि यह आतंकी हमला पाकिस्तान समर्थिक आतंकियों की करतूत है तो क्या पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए? हो सकता है भारत की ओर से किसी भी प्रकार की अति मानवाधिकारवादियों व अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को खल सकती है, पर क्या पाकिस्तान की हरकतों को यूं ही नकारा जाना चाहिए? कदापि नहीं। फिर पाकिस्तान जैसा देश दुनिया के लिए नासूर बन चुका है उसके प्रति कैसा अपनापन? अपनापन भी उसी को शोभा देता है जो उसकी कद्र करना जानता हो। आखिर कब तक देश के बेगुनाह नागरिक और सुरक्षा बल के जवान अपनी जान गवांते रहेंगे? भारत सरकार आतंकवाद पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें, यही जनता चाहती है।

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