स्वतंत्रता दिवस,संकल्प का दिन : पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत

स्वतंत्रता दिवस पर पू. सरसंघचालक जी ने सूरत में फहराया ध्वज
आज का दिन देश के लिए संकल्पबद्ध होने का दिन है – डॉ. मोहन जी भागवत


गुजरात (विसंकें). डॉ. आंबेडकर वनवासी कल्याण ट्रस्ट, सूरत, गुजरात द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आयोजित ध्वजवंदन के कार्यक्रम में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत द्वारा ध्वजवंदन किया गया. डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा कि अपने देश को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के पश्चात प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हम सब देशवासी ध्वजवंदन करते हैं. यह संकल्प का दिन है, जैसे अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन का हम स्मरण करते हैं, वैसे ही उसके लिए संकल्पबद्ध होने का भी यही क्षण है. और जिस प्रकार हम इस उत्सव को मानते हैं, वही हमारा मार्गदर्शन भी करता है कि हमको क्या संकल्प लेना है. पहले तो एकदम ध्यान में आता है कि आज का दिवस पूरा देश मना रहा है. अपने देश में अनेक पंथ संप्रदाय हैं. सब लोग सब त्यौहार नहीं मनाते, कुछ त्यौहार संप्रदाय विशेष के होते हैं. अपने देश में अलग-अलग जाति है, उनके भी अपने कुछ विशिष्ट दिवस होते हैं वो सब नहीं मानते, केवल वो जाति ही मानती है. लेकिन आज का दिवस यहां जाति, पंथ, प्रांत, राजनीतिक पार्टी सब भूलकर लोग इस ध्वज को वंदन करते हैं. एक राष्ट्रगीत-राष्ट्रगान गाते हैं और केवल भारत माता की जय, वन्देमातरम, जय हिन्द कहते हैं. संघ का सरसंघचालक आया है, इसलिए केशव की जय जय, माधव की जय जय ऐसा कहने की प्रवृति नहीं है, होनी भी नहीं चाहिए.

स्वतंत्रता दिवस पर पू. सरसंघचालक जी ने सूरत में फहराया ध्वज
आज के दिन हम स्मरण करते हैं कि हमारे देश में ये सारी विविधताएं हैं, भेद नहीं हैं. अतः विविधता में जो एकता है, उसके स्मरण का आज का दिन है. उस विविधता में एकता साधकर हम देश के नाते बहुत प्राचीन समय में खड़े हुए और बहुत उतार-चढ़ाव देखे. अभी आधुनिक उतार-चढ़ाव में हमने विजय पायी अपने देश को स्वतंत्र किया, यह आज का दिन है. उस सारे संघर्ष का उतार-चढ़ाव देखकर परिस्थिति पर विजयी होने का कारण क्या है? उसका स्मरण अपना यह तिरंगा राष्ट्र ध्वज हमको करवाता है. इसके तीन रंग हैं और उसके उपर धर्मचक्र है. यह जो धर्मचक्र है यह बताता है कि हमसब लोगों को अपने देश में धर्म के प्रवर्तन के लिए जीना है और संपूर्ण दुनिया को खोया हुआ धर्म उनको वापस देना है. धर्म के आधार पर सब लोग जुड़ते हैं, उन्नत होते है. धर्म यानि पूजा नहीं, पूजा तो धर्म का एक छोटा सा हिस्सा होता है जो धर्म है व्यापक धर्म, मानव धर्म जिसको हिन्दू धर्म भी कहा जाता है. उसमें सब प्रकार की विविधताओं की, पूजा पद्धतियों की अनुमति है. परन्तु अपनी अपनी विविधता का गौरव मन में रखते हुए सब लोग एक हो कर जियें और देश का, दुनिया का, मानवता का गौरव बढ़ायें. इसका संदेश देने वाला यह धर्मचक्र है. धर्म संकल्पना यह केवल भारत की विशेषता है. भारत का व्यक्ति पूरी दुनिया के लिए जीता है.

हमारे राष्ट्र ध्वज का पहला रंग सबसे उपर केसरिया भगवा रंग है. यह त्याग का रंग है, यह कर्मशीलता का रंग है, यह ज्ञान का रंग है. मैं कौन हूँ, दुनिया क्या है और इसमें मेरा संबंध क्या है ? यह आत्म ज्ञान प्राप्त कर उसके आधार पर सबको अपना मानकर, सबको आगे बढ़ाना. सर्वेपि सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माकश्चिद्दुःखभाग्भवेत्. इस प्रकार का मनुष्य जीवन सृष्टि में उत्पन्न करना. इसके लिए प्राचीन समय से हमारे पूर्वजों ने, ऋषि मुनियों ने, योद्धाओं ने, राजाओं ने, भक्तों ने त्याग किया. उस त्याग का रंग भगवा है. त्याग करने वालों के वस्त्रों का रंग भगवा है. सुबह उठते है.. सूर्योदय होता है तो आसमान में जो रंग दिखता है, अंधकार समाप्त कर प्रकाश बढ़ाने वाला वही यह रंग है. उठने के बाद लोग काम में लग जाते है, रात को सो जाते है, फिर उठकर काम में लग जाते हैं. यह कर्मशीलता का रंग है और यह कर्मशीलता किनकी है, त्याग किनका है ? जिनका जीवन विशुद्ध है, निर्मल है. उस निर्मलता का, पवित्रता का प्रतीक सफेद रंग है. और ऐसा करने से होता क्या है? तो संपूर्ण विश्व में सबके लिए समृद्धि मिलती है, उसी समृद्धि का प्रतीक हरा रंग
देश को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इस स्वतंत्रता का प्रयोजन क्या था ? क्यों हम स्वतंत्र होना चाहते थे ? तो हम एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं, जिसमें भारतवासियों के त्याग, कर्मशीलता और ज्ञान के आधार पर और उनके हृदय की निर्मलता, शांतिपूर्णता के आधार पर संपूर्ण विश्व समृद्ध होकर श्रेयस की ओर आगे कूच जारी रखें. यह कर्तव्य पूरा करने के लिए भारत को स्वतंत्र होना, भारत को समर्थ होना, भारत को सुरक्षित होना और भारत को परम वैभव संपन्न होना आवश्यक है. वो करने के लिए मेरा जीवन है, मेरे जीवन की सारी शक्तियां, अपने इस कर्तव्य को पूरा करने में लगा दूंगा. यह संकल्प प्रतिवर्ष अपने स्वतंत्रता दिवस पर हमको लेना चाहिए. वैसा आप संकल्प धारण करेंगे और उस संकल्प की पूर्ति के लिए प्रयास करेंगे, उस संकल्प की पूर्ति के लिए अपने जीवन में आवश्यक जीवन परिवर्तन आप स्वयं करेंगे, इस आशा और विश्वास के साथ आपको धन्यवाद देता हुआ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ.

कार्यक्रम में मंच पर हिमांशु भाई भट्ट ( अध्यक्ष,डॉ. आंबेडकर वनवासी कल्याण ट्रस्ट), डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया (मा. संघचालक, पश्चिम क्षेत्र), सुरेशभाई मास्टर (विभाग संघचालक, सूरत) उपस्थित रहे.

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