सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार Ganga sagar






तीर्थ  यात्रा - "सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार"


बैरकपुर  में  पोस्टिंग  की  खबर  सुन  कर  मेरे  माता  पिता  को  बहुत  ख़ुशी  हुई, उनकी  वर्षों  की इच्छा थी  कि  गंगा  सागर  की  तीर्थ  यात्रा की  जाये, किन्तु यात्रा के बारे में सुनी गए बातें और कोलकाता में कोई व्यवस्था न होने के कारण उनकी यह इच्छा अधूरी रही थी. कोलकाता में मेरी पोस्टिंग उनकी इस इच्छा पूर्ति की दिशा में सहायक था.

पिताजी ने नववर्ष पर पत्र लिख कर मुझे गंगा सागर की यात्रा की तैयारी करने के निर्देश दे दिए, मैंने सोचा कि अभी जनवरी में बोले हैं, तो उनके आने में कुछ समय तो लगेगा ही, किन्तु मेरे आश्चचर्य की कोई सीमा नहीं रही, जब अगले ही सप्ताह पिताजी और माँ बैरकपुर आ गए.

"मैंने सोचा कि गंगा सागर तो मकर संक्रांति में ही जाना चहिये, इस लिए मैं तुरंत आ गया." आते ही पिताजी ने कहा "क्या तुमने सारी बातें पता की?" पिताजी की धार्मिक प्रवृति को ध्यान में रखते हुए मुझे इसका ख्याल रखना चहिये था. पिताजी को आश्वस्त कर मैं इंस्टिट्यूट के कर्मचारियों से इसके बारे में पता कियाI खैर, हमारा गंगा सागर जाने का कार्यक्रम बनने लगा.

समाचार पत्रों में गंगा सागर स्पेशल ट्रेन के समय के बारे में पता किया, योजनानुसार 13 जनवरी रात्रि आठ बजे हम तीनों लोग (माँ पिताजी और मैं) गंगा सागर की यात्रा पर निकल गए, योजना थी कि  सारी रात सफ़र कर 14 जनवरी को तडके गंगा सागर पहुँच कर और स्नान दान कर जल्दी ही लौट जायेंगे ताकि दिन ढलते हम सब वापस इंस्टिट्यूट पहुच जाए. 
 मकर संक्रांति की भीड़ भाड में रफ़्तार तेज रखने और यात्रा में अधिक वजन ढोने से बचने के लिए, हम लोगों ने निर्णय लिया की सामान कम से कम रखा  जाये, केवल जरूरत के गरम कपडे रखे गए. भीड़ भाड में पॉकेट मारों से बचने के लिए रुपये भी केवल जरूरत भर ही रखने का फैसला हुआ, सारी  तैयारी कर लेने के बाद हम लोग गंगा सागर की यात्रा पर निकल पड़ेI नीलगंज (बैरकपुर) से बस द्वारा  बैरकपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे. लोकल ट्रेन से हम लोग  स्यालदाह  रेलवे स्टेशन पहुँच गए, नौ बज कर पंद्रह मिनट हुए थे.
 समाचार पत्र की सूचना के अनुसार काकद्वीप के लिए गंगा सागर स्पेशल लोकल ट्रेन रात्रि 11.30 पर खुलने वाली थी, यह ट्रेन स्यालदाह दक्षिण से खुलने वाली थीI स्यालदाह दक्षिण रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचने पर पता चला की लक्ष्मिकान्तपुर के लिए एक लोकल रात्रि 10.10 पर खुलने वाली है.  वहां खड़े स्थानीय यात्रियों  ने सलाह दिया कि  चूँकि लक्ष्मिकान्तपुर काकद्वीप के रास्ते में ही हैं, और लक्ष्मिकान्तपुर से दूसरी लोकल ट्रेन मिलने की भी सम्भावना है, इसलिए हम लोग उस ट्रेन से लक्ष्मिकान्तपुर तक की यात्रा कर सकते हैंI यदि लक्ष्मिकान्तपुर में कोई कंनेक्टिंग ट्रेन न भी मिला तो 11.30 की गंगा सागर स्पेशल तो मिलेगा ही. हम लोगों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. एक घंटे की बचत का सवाल थाI हम लोग तुरंत 10 नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँच गए. ट्रेन खडी थी, पूरी की पूरी ट्रेन लगभग खाली थी, हम एक खाली कम्पार्टमेंट में बैठ गए. लोकल ट्रेन अपने स्वभाव के अनुसार टाइम से खुली और बीच में पड़ने वाले सभी स्टेशन पर रुकते हुए लक्ष्मिकान्तपुर को चली.धीरे धीरे ठण्ड महसूस होने लगी और माँ ने शौल से अपने को ढँक लिया, मैंने उठ कर सारी खिडकियों को  बंद किया  और केवल एक खिड़की से बाहर  का नज़ारा देखने लगा. बाहर घनघोर अँधेरा था और लोकल अपनी रफ़्तार से अपने लक्ष्य को बढती जा रही थी.

रात्रि 11.50 पर यह लोकल ट्रेन हम लोगों को लक्ष्मिकान्तपुर स्टेशन पंहुचा दीI हम लोग भाग्यवान थे कि 12.00 बजे एक दूसरी लोकल काकद्वीप को खुलने के लिए खडी मिल गईI हम लोग जल्दी जल्दी दुसरे प्लेटफ़ॉर्म पर खडी इस लोकल में चढ़ गएI एक घंटे में करीब 1.00 बजे रात्रि हम लोग काकद्वीप पहुच गएI यहाँ से हमें हर्वूद पॉइंट जेट्टी  नंबर ८ से समुद्री जहाज से आगे की यात्रा करनी थीI

हर्वूद पॉइंट जेट्टी   नंबर 8, काकद्वीप रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर थाI अर्ध रात्रि में इस दूरी को तय करने के लिए दो ही साधन  वहां उपलब्ध थे: रिक्शा वान और एक ट्रक जो की बालू या ईट ढोने का काम करता होगाI इस ट्रक का डाला धुल धूसरित थाI फिर भी समय की बचत का ख्याल रखते हुए हम लोगों ने निर्णय लिया कि  ट्रक से ही चला जाया, जो बाद में गलत निर्णय साबित हुआ, जिसे पाठक बाद में महसूस करेंगेI 10 रुपये प्रति आदमी पर ट्रक वाला हम लोगों को लोत नंबर 8 ले जाने की लिए तैयार हुआI  वृद्ध  माँ-पापा को ट्रक पर बैठाना मुझे उचित तो नहीं लग रहा था, किन्तु और कोई विकल्प भी नहीं थाI किसी तरह लोगों की मदद से माँ-पापा को खुला ट्रक पर बैठायाI ट्रक चल पड़ीI जैसे जैसे ट्रक अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी ठण्ड से माँ-पापा को परेशानी महसूस होने लगीI  

5-6 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद ट्रक अचानक रुक गईI ट्रक से उतर कर पता करने पर पता चला कि  यहाँ से लोत नंबर 8 तक ट्राफिक जाम के वजह से ट्रक का आगे जाना संभव नहीं हैंI ट्रक पर सवार दुसरे यात्री ट्रक वाले से पैसा वापस करने की जिद करने लगेI मेरे पापा जो अब तक ट्रक से उतर चुके थे एक नेता पुत्र होने के नाते यात्रियों की इस भीड़ का नेतृत्वा  कर रहे थे और ट्रक वाले से पैसे मांगने में सबसे आगे थेI ट्रक वाला 8/- रुपये काट कर 2/- रुपये देने को तैयार थाI किन्तु पब्लिक का तर्क था कि चूँकि उन्हें लोत नंबर 8 तक ट्रक वाला नहीं पहूँचा पाया, इसलिए अलिखित कांट्रेक्ट का उल्लंघन हुआ और उसे पूरे पैसे लौटानें चहियेI

तभी मुझे एक रिक्सावान दिखा, जो खाली थाI कोल्कता में रहने वाले रिक्शा वान से परिचित होंगेI दरअसल यह तीन पहियों वाला रिक्शा ही है जिसके  सीट को हटा कर पटरे लगा दिए जाते हैं ताकि अधिक से अधिक सवारी  को ले जाया जा सकेI लोग कम से कम भाड़े में सफ़र करना चाहते हैं क्योंकि किसी भी तरह के सवारी किराये में वृद्धि कोल्कता वासी जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं इसी के समाधान का एक उदहारण है रिक्शा वान, जिसमे अधिक से अधिक लोग कम से कम पैसे में सवारी कर पाते हैंI रिक्सा  वाले से बात करने पर वह 25/- रुपये प्रति हेड जेट्टी तक ले जाने के लिए तैयार हो गयाI मैं पापा को लगभग खीचते हुए इस रिक्सा वान में माँ के साथ बैठा दिया और रिक्सा वाले से चलने को कहाI करीब 1.30 अर्ध रात्रि हम लोग जेट्टी पर थेI मैं मन ही मन बड़ा खुश था कि हम लोग बड़े समय से अपनी योजना के अनुसार जेट्टी पहुच गए थेI हमें क्या मालूम था कि असली समस्या तो अब शुरू होने वाली थी.I

रिक्सा वाले को पैसे देकर एवं  माँ-पापा को पीछे से आने को कह कर, मैं जल्दी जल्दी आगे बढ़ कर  स्टीमर का टिकेट लेने के लिए टिकेट खिड़की पर गया, जहाँ काउंटर क्लर्क ने मुझे टिकट देने के बाद  बताया कि सागर द्वीप को पहला स्टीमर प्रातः 6.00 बजे जाएगीI मेरा सारा उत्साह इस एक जानकारी से रफू चक्कर हो गयाI इस का मतलब यह था कि अब हमें 4-5 घंटे खुली आसमान के नीचे स्टीमर खुलने के इंतज़ार में बिताना थाI प्रति टिकट 35/- रुपये देने के बाद में अपना मूंह लटकाए टिकेट खिड़की के बाहर  निकल आयाI तब तक माँ-पापा भी पहुँच गएI मेरे चेहरे पर उडती हवाइयां को देख कर पापा ने अन्देशा लगा लिया कि कुछ गड़बड़ हैI मेरे बताने पर पापा जरा भी नाराज नहीं हुएI बोले तीर्थ यात्रा यदि शारीरिक कष्ट के बिना  पूर्ण हो तो पुण्य नहीं मिलताI उनके चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थीI

टिकट खिड़की से लेकर जेट्टी तक 3 किलोमीटर के पूरे रास्ते पर तीर्थ्यात्र्यों की लम्बी कतारबद्ध भीड़ थीI धीरे धीरे हम लोग उस भीड़ में से रास्ता बनाते हुई आगे की ओर बढ़ने लगेI चूँकि ठण्ड से बचने के लिए लोग कम्बल में दुबके हुए सो रहे थे इसलिए किसीने हमें टोका नहींI जेट्टी के काफी पास आकर हम लोग भी जगह बना कर बैठ गए और सुबह का इंतज़ार करने लगेI उस समुद्र तट पर उस दिन नहीं तो लाख तीर्थयात्री अवश्य होंगे पर ठण्ड और रात्रि के समय में, सुबह के इंतज़ार में बैठे यात्रियों के उस विशाल जन सैलाब में जरा भी हल्ला  गुल्ला नहीं हो रहा थाI निस्तब्ध शांति ब्याप्त थीI ऐसी शांति जो किसी मुनि के आश्रम में रहती हैंI तीर्थ यात्रियों के आत्मसंयम और अनुशासन का नायiब उदाहरण थाI लोगों में गजब का संतोष और पैसेंस दिखाI तीर्थ का असली महत्व यहीं समाज में आयाI

सुबह 6.00 बजे समयानुसार जेट्टी के गेट खुलेI हमें 6.30 पर खुलने वाली पहली स्टीमर में जगह मिल गयीI यह स्टीमर तीन तल का स्टीमर था जिसमे कम से कम दस हज़ार यात्री यात्रा कर सकते थेI मुरी गंगा क्रीक से होते हुए यह स्टीमर सागर द्वीप की ओर चलीI दो घंटे की यात्रा के बाद हमारा स्टीमर केचुबेरिया द्वीप के उत्तर पश्चिम तट पर आ लगाI गंगा सागर का धार्मिक स्थान इसी केचुबेरिया द्वीप के दक्षिण पूरब तट का समुन्द्र तट है, जहाँ गंगा समुद्र में जा मिलती हैं, और जहाँ राजा के पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुई थी, जिसके लिए राजा भागीरथ ने इतनी कठीन तपस्या की थीI केचुबेरिया के इस तट से गंगा सागर 30 किलोमीटर दूर हैI टैक्सी और बस सर्विस दोनों ही यहाँ से उपलब्ध हैंI टैक्सी भाडा 50/-  रुपैये प्रति ब्यक्ति और बस भाडा 20/- रुपैये प्रति ब्यक्ति हैI हमने बस से जाने का निश्चय कियाI इस बस ने हमें गंगा सागर 9.30 बजे पंहुचा दियाI इस प्रकार गंगा सागर की एक तरफ की यात्रा हम लोगों ने 12 घंटे में पूरा कियाI

इस तट पर मौजूद जन सैलाब का कोई अंत नहीं थाI लोग आते ही जा रहे थेI मेले में खोने से बचने के लिए एक गाँव के लोग एक झुण्ड में चल रहे थेI सामान्यतः इन ग्रामीणों का नेत्रत्व उनके ही गाँव का कोई पंडित कर रहा होताI  यहीं गंगा सागर  समुद्र तट पर तीर्थ यात्रियों का एक जत्था दिखा जिसका नेतृत्व गाँव का एक पंडित कर रहा थाI वह पंडित जब भी चिल्लाता "सारे तीरथ बार बार" उसके साथ के ग्रामीण जवाब देते "गंगा सागर एक बार"I  संभवतः वह पंडित गंगा सगर की यात्रा से वाकिफ था और अपने गाँव वाले की तीर्थ यात्रा में मदद कर रहा थाI "इस पंडित को इसका पुण्य अवश्य मिलेगाI यह इतने ग्रामीण लोगों की तीर्थ यात्रा करवाने में मदद कर रहा है" मैंने कहाI पर पापा मेरे मत से सहमत नहीं थेI "अरे यह तो इसका धंधा है जिसके लिए वह ग्रामीणों से पैसे लेगाI किसी त्याग की भावना से वह पंडित थोड़े न  परेशान हो रहा है.Iइस  तीर्थ का पुण्य तो तुम्हे प्राप्त होगा जो माँ-पापा को तीर्थ यात्रा करवा रहे होI" पापा के इस वचन से मैं अभिभूत हो गयाI मन में एक गहरे आत्मिक संतोष का अनुभव हुआI इस हल्ला गुल्ला में कुछ भी पता नहीं चल रहा थाI गंगा सागर के इस पवित्र तट पर जहाँ नदियों की देवी गंगा का सागर में विलय होता है यह मान्यता हैं कि इस पवित्र पावनी गंगा और सागर तट पर एक डुबकी लगाने मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती हैंI

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में यह उल्लेख है कि इक्शवाक वंश के राजा सगर को कोई पुत्र नहीं थाI पूजा पाठ और हवन यज्ञ आदि के बाद राजा की पहली पत्नी केशनी को एक पुत्र हुआ जिनका नाम अजम्यश रखा गयाI राजा की दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र हुएI जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो राजा के ये साठ हज़ार पुत्र, अश्वमेध यज्ञ के अश्व की सुरक्षा में लगेI देवराज इन्द्र जिन्हें हमेशा अपने सिंहांसन के खिसकने का  भय रहता था, ने अपने दूतों से इस अश्व को इसी गंगा सागर के तट पर तपस्या कर रहे कपिल मुनि के आश्रम में बांध देने को कहाI अश्व को खोजते खोजते राजा सगर के पुत्र इस आश्रम में जब पहुचे तो उन्हें वो अश्व बंधा मिलाI मुनि को उन्होंने  युद्ध के लिए तो नहीं ललकारा पर अपशब्द कहने लगेI मुनि जब तपस्या से उठे और उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो उनके क्रोध का कोई पारावार नहीं रहाI इस क्रोध की प्रचंड ज्वाला में राजा सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र भस्म हो गएI राजा सागर को जब अपने पुत्रों  का कोई समाचार नहीं मिला तब उन्होंने अपने पौत्र अंशुमन को उनका पता लगाने भेजाI अंशुमन पूरी पृथ्वी पर अश्व को खोजते खोजते कपिल मुनि के आश्रम पर पहुचे जहाँ उन्हें अपने साठ हज़ार चाचाओं के भस्म के दर्शन हुएI राजा अंशुमन के द्वारा बार बार विनती करने पर मुनि कपिल ने ही इन साठ हज़ार आत्माओं के मोक्ष हेतु गंगा को पृथ्वी पर लाने का उपाय बतायाI राजा सगर के बाद राजा अजम्यश, फिर राजा अंशुमन और अंत में राजा बने भागीरथ को अंततः इस प्रयास में सफलता मिली और माँ गंगा ने धरती पर अवतरण  कियाI मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को इस प्रकार मोक्ष प्राप्त हुईI राजा भागीरथ के अदम्य साहस और संकल्प से हर हिन्दू परिचित हैI जब उन्हें अपने साठ हज़ार पूर्वजों के श्राद्ध के लिए जल नहीं मिला (चूँकि राक्षसों के संहार के लिए समुद्र का जल ऋषि अगस्त्य पी गए थे)  तब उन्होंने कपिल मुनि के आदेशानुसार गंगा को धरती पर उतरने का संकल्प कियाI उन्होंने पहले ब्रह्मा की तपस्या कीI ब्रह्मा ने उन्हें विष्णु की तपस्या करने को कहाI जब विष्णु की तपस्या की तो भगवान्  विष्णु इस तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रकट हुए और कहा कि देवाधीदेव भगवन शंकर ही गंगा के प्रचंड वेग को पृथ्वी पर नियंत्रित कर सकते हैंI राजा भागीरथ ने हार नहीं मानी और फिर भगवान् शिव की तपस्या में लग गएI शिव ने प्रसन्न हो कर गंगा को अपने जटा में उतIरने के लिए सहमति प्रदान कीI इस प्रकार भागीरथी तपस्या सफल हुई और गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईI इसी गंगा को ले कर भागीरथ फिर कपिल मुनि के आश्रम पहुचे और अपने पूर्वजों का श्राद्ध कियाI

गंगा सागर का मेला भारत वर्ष में लगने वाले कतिपय बड़े मेलों में से एक हैI विश्वप्रसिद्ध कुम्भ के मेले के बाद गंगासागर का मेला दूसरा सबसे बड़ा मेला हैI बिहार का सोनपुर  मेला भी इस मेले जितना बड़ा नहीं हैI पर कुम्भ मेला हो यह गंगासागर का मेला या फिर सोनपुर का मेला: सभी मेला हिन्दू धर्म के आस्था से जुड़ा हैI  हर वर्ष 10 लाख से भी अधिक यात्री इस मेले में शिरकत करते हैंI सम्पूर्ण भारत वर्ष के कोने कोने से आये तीर्थ यात्री यहाँ मिल जायेंगेI इस मेले के लिए कोई खास प्रचार नहीं किया जाता हैंI कोई विशेष सरकारी सुविधाएँ भी तीर्थ यात्रयों को नहीं उपलब्ध कराये जाते  हैI तथापि यहाँ मौजूद विशाल जन समूह इस बात का गवाह था की भारत की आत्मा एक है और भारतवासी के हृदय में एक ही संस्कृति और धर्म का निवास हैंI देश की धड़कन का असली रूप यहीं नज़र आता हैI इस कठिन यात्रा के बाद भी लोगों में थकान का कोई असर नहीं थाI

"कपिल मुनि की जय" के नारे लगाता तीर्थ यात्रयों का जत्था मेले में घूम रहा थाI यहाँ कोई अमीर नहीं है और न ही कोई गरीबI वृद्ध, बच्चे और जवान सभी मेला घुमने में मग्न नज़र आयेI कुछ हिन्दू धार्मिक संघठनो के अखाड़े भी नज़र आये; जैसे भारत सेवाश्रम, राम कृष्ण आश्रम आदिI इन संगठनों का योगदान निश्चय ही सराहनीय हैI इन अखाड़ों के तम्बू में विशाल झंडे लहरा रहे थेI यह झंडे ही इन अखाड़ों की पहचान हैंI घंटी, शंख और प्रार्थना के स्वर से पूरा वातावरण गुंजयिमान थाI समुद्र तट पर चारों और दुकाने सजी थीI इन दुकानों में मिठाई, से ले कर पूजा सामग्री, रुद्राक्ष आदि बिक रहे थेI बच्चों  के खिलौने  की कुछ दुकाने भी थीI इस द्वीप पर यहाँ के लोगों के लिए ये कमाई का सीजन थाI यहाँ आने  वाले नागा साधू भी लोगों के कौतुहल के विषय होते हैंI उनके बिना यह मेला अधुरा हैI  कुछ छोटे मोटे मंदिर भी हैI किन्तु लोगों के आकर्षण का केंद्र मुनि कपिल का आश्रम हैI लोगों की मान्यता हैं कि असली आश्रम तो समुद्र में विलीन हो गया हैं और जो वर्त्तमान में मौजूद है वह हाल के वर्षों में सरकार द्वारा बनवाया गया हैI

कपिल मुनि ऋषि कर्दम और दक्ष पुत्री देवहूति के पुत्र थेI उन्हें विष्णु का अवतार माना जाता हैI वर्तमान कपिल मुनि के मंदिर में कपिल मुनि की एक बड़ी मूर्ति है जो योगासन में सागर के सम्मुख बैठी हैI यहाँ पर राम सीता की भी मूर्ति हैI एक अश्व की मूर्ति भी है जो अश्वमेध के अश्व का प्रतीक हैI एक शिला है जिसके बारे में ये मान्यता है कि वह कपिल मुनि के आदि आश्रम की शिला हैI

गंगा सागर समुद्र तट पर पहुँच कर हम लोग पहले एक निरापद और शांत जगह की तलाश में थे ताकि दैनिक कर्मों से मुक्त हुआ जा सकेI थोड़ी दूर चलने के बाद ऐसा स्थान मिला जो तट पर नहीं था वरण एक स्थानीय निवासी का घर थाI उनसे निवेदन करने पर उनलोगों ने हम लोगों की मदद की और अपना टोइलेट इस्तेमाल करने दियाI हम लोग फिर वापस समुद्र तट पर आ गएI यहाँ स्नान करने के बाद हम लोगों ने पूजा कियाI एक सज्जन मिले जो एक  बछिया ले कर घूम रहे थे और लोगों को बैतरनी पर करा रहे थेI धर्म के दुरुपयोग का ऐसा नमूना मैंने नहीं देखा थाI “ पापी पेट का सवाल हैंI इस पेट की भूख लोगों से क्या क्या न करवाती हैI यह सज्जन तो फिर भी को भ्रस्टाचार में लिप्त कोई काम नहीं कर रहे थेI”- मुझे उस सज्जन को देखते देख कर मेरे पिताजी ने कहाI मुझे अपने पिताजी की कही बात भी सही लगीI

गंगासागर में धार्मिक महत्त्व के अलावा भी कुछ देखने के लिए हैI इनमें सागर मरीन पार्क, सुषमा देवी चौधुरी मरीन रीसार्च  इंस्टिट्यूट, बमंखाली, चिमागुदी मद फ्लैट (मंग्रोव फारेस्ट ) आदि प्रमुख हैंI पूजा, मेला और मंदिर स्थान में घुमने के बाद हम लोगों को भूख लग गईI एक छोटे से अस्थायी होटल में खाना खाने  और एक आश्रम में थोड़ी देर आराम करने के बाद हमने निर्णय लिया कि अब लौटना चाहिएI तीन घंटे हम लोगों ने सागर तट पर बिताया थाI अब तक दोपहर हो गयी थी और अभी भी लोगों का आना जारी थाI भीड़ पहले से काफी बढ़ गयी थीI पूरा का पूरा सड़क लोगों से पटा थाI इसी  स्थिति में बस, टैक्सी या रिक्शा वान का मिलना असंभव थाI हम लोग पैदल ही निकलेI तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ कर अब तक 3 लाख् से ऊपर हो चुकी थीI सूरज सर के ठीक ऊपर था और सूरज देवता की प्रचंड गर्मी से माँ खास कर व्याकुल होने लगीI पर कोई उपाई नज़र नहीं आ रहा थाI नीचे बालू भी काफी गरम हो चुकी थी जिससे पैदल चलने में भी काफी कठिनाई महसूस हो रही थीI खैर, 3 किलोमीटर चलने के बाद हमें कुछ टैक्सी और रिक्शा वान दिखे जो यात्रियों को वापस जेट्टी ले जा रही थीI मैं जल्दी से एक कार वाले से तीन सीट बुक करने पहुच गयाI“ सर, 500/- रुपैया प्रति ब्यक्ति लगेगाI”- टैक्सी वाले ने टका सा जवाब दियाI में तो हैरान ही रह गयाI इसी टैक्सी का भाडा सुबह 50/- था और अब 500/-I हम लोग अपने उस निर्णय को कोसने लगे जब पाकेट मारों से बचने के लिए हम लोगों ने ज्यादा पैसे नहीं रखने का निश्चय किया थाI हमलोगों के पास इतने पैसे नहीं थे कि हम लोग कार से जा  सकेंI मजबूरी में हम लोगों ने एक रिक्शा वान लिया जो हमें 40/- पर आदमी चमेर गुडिया के जेट्टी पर ले जाने को तैयार हुआ, जो यहाँ से सबसे नजदीक थाI रिक्शा वान वाले ने ही बताया की वहां से भी नामखाना के लिए स्टीमर खुलते हैंI 1.00 बजे अपराह्न हम लोग चमेर गुरिया जेट्टी पहुच गएI वहां भी तीर्थ यात्रयों की अपार भीड़ थीI मैं लाइन में खड़ा  हो गया और माँ-पापा को आगे जेट्टी के पास चले जाने को कहाI वहां एक पेड़ के छांव में बैठ गए और पापा तो गमछा बिछा कर लेट ही गएI यह लाइन भी 1 किलोमीटर लम्बी थीI धीरे धीरे बढ़ते हुई मेरा नंबर 2 घंटे बाद आयाI 60/- प्रति आदमी टिकट लेने के बाद हम लोग स्टीमर में सवार हो गएI स्टीमर पर भीड़ सामान्य थी और हम लोगों को बैठने के लिए बेंच मिल गयीI 3.00 बजे अपने नियत समय पर यह स्टीमर ऍम. भी. राजधानी, चमेर गुरिया जेट्टी से नामखाना के लिए खुलीI

स्टीमर पर ठंडी ठंडी हवा में माँ-पापा दोनों को नींद आ गयीI मैं समुद्र का विस्तार देखने लगाI विशाल समुद्र के सीने को चीरता हुआ हमारा जहाज एम्. भी. राजधानी बढती जा रही थीI मैंने चैन का सांस लिया कि कम से कम हम द्वीप पर फंसने से बच गएI जेट्टी पर कई लोग थे जो अपने परिजनों से बिछर गए थेI इनमें औरतें भी थी और वृद्ध भीI मेरा मन इनके दुःख  देख कर दुखी हो उठाI ज्यों ज्यों शाम गहराती जा रही थी, त्यों त्यों लोगों की बैचैनी  बढती जा रही थीI लोग रात्रि से पहले अपने अपने बसेरे में लौट जाना चाहते थेI मैं शांत मन से समुद्र में उठती गिरती लहरों को देखता रहाI सोचता रहा कि धार्मिक आस्था मनुष्य को कितने मुश्किलों का सामना करने के काबिल बना देती हैI कदाचित यदि धर्म का मामला इस यात्रा से नहीं जुड़ा रहता तो लोग शायद ही इस द्वीप में घूमने आतेI यही आस्था है सो मनुष्य को शकित्वान बनाती है और यही आस्था है जो मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा देती हैI यही वो विश्वास है जो ईश्वर में विश्वास कायम रखती हैंI ईश्वर की शक्ति में सर झुकाने को मजबूर करती हैI 5.00 बजे हम लोग नामखाना पहुँच गएI काकद्वीप यहाँ से 15 किलोमीटर दूर हैI हम लोग काकद्वीप कैसे जाए यह सोच ही रहे थे कि एक सहयात्री ने हमें बताया की जेट्टी से 2 किलोमीटर दूर ही नामखाना का बस स्टैंड है जहाँ से कोलकाता के लिए बसें मिलती हैI हम लोग रिक्शा से बस स्टैंड पहुंचेI पर मालूम हुआ कि बस के खुलने में थोड़ी देरी हैI इस बीच हमलोगों ने चाय पी और जब तक चाय पी कर तरोताजा होते, सूचना मिली कि कोलकाता के लिए बसें खुलने ही वाली हैI मैं दौड़ कर एक बस में चढ़ गया और बड़ी मुश्किल से तीन सीट कब्ज़ा कियाI बसें क्या थी, तीन ओर की सीट खोल दिए गए थे और फर्श पर पुवाल  बिछा दी गयी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ले जाया जा सके और अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकेI माँ को नीचे पुवाल पर बैठना ज्यादा सहूलियत वाला लगा और वो वहीँ पुवाल बिछे बस के फर्श पर बैठ गईI 5.30 पर बस खुलीI प्रारंभ में और भी तीर्थयात्रियों को उठाते हुए कोल्कता की और चल पड़ीI पूरी बस अब ठसाठस भरी थीI फर्श पर बैठने के भी 50/- प्रति व्यक्ति चार्ज किया गया जो हमने भी दिया. 8.00 बजे यह बस एस्प्लानद (कोलकाता) पहुंची और 9.00 बजे हावड़ाI

थकान के मारे पूरे रास्ते हममे से कोई भी कुछ भी नहीं बोलाI न ही कोई यात्रा के बारे में कुछ बोलने लायक बचा था न ही शरीर में इतनी शक्ति थी कि सहयात्रियों से कोई बात चीत की जाएI 9.00 बजे हावरा पहुचने पर हमलोगों ने एक टैक्सी किया इस शर्त पर कि पैसे हम लोग साहब बगान (बैरकपुर) पहुँच कर ही देंगेI टैक्सी वाला हमारी विचित्र शर्त को सुन कर अचंभित थाI मेरे पापा ने टैक्सी वाले को हमारी समस्या के बारे में बतायाI यह जान कर कि हम लोग गंगासागर से थके हारे आ रहे हैं और हमारे पैसे भी ख़त्म हो रहे हैं, वह भला मानुस हमें हमारी शर्तों पर ले जाने को तैयार हो गयाI उस टैक्सी वाले को आश्चर्य हो रहा था कि 30 वर्षों से कोल्कता में रहने के बाद भी वो गंगासागर जाने से घबराता है, जब कि हम सब इस तीर्थ से सकुशल वापस आ ने वाले तीर्थ यात्री थेI 10.15 रात्रि हम सब साहब बगान पहुंचेI टैक्सी वाले को पैसे चुकाए और घर में घुसते ही सोफे पर पसर गएI मेरी पत्नी ने गरमागरम खिचड़ी बना कर रखा था जो कि मकर संक्रांति का विशेष व्यंजन हैI हाथ पैर धो कर हम लोग खिचड़ी पर इस तरह टूट पड़े जैसे वर्षों से खाया पिया न होI सोने के समय मेरे कान में बार बार  गंगा सागर में साधू द्वारा लगाया नारा गूँज रहा था "सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार".

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गंगासागर में डुबकी लगाने पहुंचे सात लाख श्रद्धालु

विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। मकर संक्रांति की पावन बेला में गंगासागर तट पर जनसमूद्र उमड़ पड़ा है। बुधवार तक करीब सात लाख पुण्यार्थी पहुंचे। सागरद्वीप में पैर रखने को अब जगह नहीं बची है। हर जगह श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं।

सागरद्वीप के सभी प्रवेश पथों पर अभी भी मोटरबोट पकड़ने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी हुई है। मूड़ीगंगा में पानी कम होने के कारण मोटरबोट कम चलाए जा रहे हैं जिसके कारण हजारों की तादाद में लोग वहां फंसे हुए हैं।

सागर मेले की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। बुधवार से सागरतट के आसमान ड्रोन ने भी काम करना शुरू कर दिया है।

कपिल मुनि मंदिर में खास चौकसी है। इस बीच अभी से ही सागर में स्नान करने लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। कपिल मुनि मंदिर के महंत ज्ञानदास ने बताया कि पुण्य स्नान का सटीक समय 15 तारीख को प्रातः 7.34 बजे से शुरू होगा और अगले 16 घंटों तक चलेगा, हालांकि पुण्य स्नान के समय से आठ घंटे पहले से भी स्नान शुरू किया जा सकता है। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाराज उस दिन सुबह आठ बजे पुण्य स्नान करेंगे।

ममता से क्षुब्ध शंकराचार्य

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने बंगाल सरकार द्वारा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित करने की केंद्र सरकार से मांग पर उनसे सलाह मशविरा नहीं करने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति परोक्ष तौर पर क्षोभ व्यक्त किया है।

मकर संक्रांति के पावन अवसर पर पुण्य स्नान करने सागरद्वीप पहुंचे शंकराचार्य ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ममता बनर्जी गंगासागर का विकास करना चाहती है तो यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि यह धार्मिक प्रशासन क्षेत्र पुरी पीठ का है और उनके शासन तंत्र के अधीन है इसलिए राज्य सरकार को सिर्फ केंद्र से संपर्क न करके दोनों तंत्रों से बातचीत करनी चाहिए थी। यहां विकास का स्वरूप क्या होगा, इस बाबत हम से भी संपर्क किया जाना चाहिए।
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गंगासागर तीर्थ का मकर संक्रांति पर विशेष महत्व
तारीख: 04 Jan 2014 
 पश्चिम बंगाल स्थित गंगासागर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहंुचकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है। यहां संक्रांति पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि 'सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार'।
गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से नामखाना की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। यहां से चामागुरी घाट तक नौकाएं जाती हैं और वहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर गंगासागर है।  सागर द्वीप पर साधुओं का निवास है और द्वीप 150 वर्गमील के लगभग है। यहां वामनखल नामक प्राचीन मंदिर भी है। इसी के निकट चंदनपीड़ी वन में जीर्ण मंदिर और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी मंदिर है। गंगासागर में एक मंदिर भी है, जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना भी की जाती है। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के  60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर में बह गया, उसकी मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा-अर्चना हेतु मिलती है। अब यहां एक अस्थायी मंदिर ही बना है। इस स्थान पर कुछ भाग चार वर्षों में एक बार ही बाहर आता है, शेष तीन वर्ष जलमग्न रहता है।

मान्यता है कि एक बार गंगासागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के समान फल मिलता है। गंगासागर में पांच दिनों तक मेला लगा रहता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई लाख श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है। उसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।

मकर संक्रान्ति पर दान का विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दिए दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।

सूर्य उत्तरायण होते हैं
सामान्यत सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसी जिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। इस लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की जाती है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष जनवरी में ही पड़ता है।

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में जाकर मिल गयी थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए यही व्रत किया था।  प्रतिनिधि 
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गंगासागर में डुबकी लगाने पहुंचे सात लाख श्रद्धालु

विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। मकर संक्रांति की पावन बेला में गंगासागर तट पर जनसमूद्र उमड़ पड़ा है। बुधवार तक करीब सात लाख पुण्यार्थी पहुंचे। सागरद्वीप में पैर रखने को अब जगह नहीं बची है। हर जगह श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं।

सागरद्वीप के सभी प्रवेश पथों पर अभी भी मोटरबोट पकड़ने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी हुई है। मूड़ीगंगा में पानी कम होने के कारण मोटरबोट कम चलाए जा रहे हैं जिसके कारण हजारों की तादाद में लोग वहां फंसे हुए हैं।

सागर मेले की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।  सागरतट के आसमान ड्रोन ने भी काम करना शुरू कर दिया है।

कपिल मुनि मंदिर में खास चौकसी है। इस बीच अभी से ही सागर में स्नान करने लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। कपिल मुनि मंदिर के महंत ज्ञानदास ने बताया कि पुण्य स्नान का सटीक समय 15 तारीख को प्रातः 7.34 बजे से शुरू होगा और अगले 16 घंटों तक चलेगा, हालांकि पुण्य स्नान के समय से आठ घंटे पहले से भी स्नान शुरू किया जा सकता है। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाराज उस दिन सुबह आठ बजे पुण्य स्नान करेंगे।

ममता से क्षुब्ध शंकराचार्य

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने बंगाल सरकार द्वारा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित करने की केंद्र सरकार से मांग पर उनसे सलाह मशविरा नहीं करने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति परोक्ष तौर पर क्षोभ व्यक्त किया है।

मकर संक्रांति के पावन अवसर पर पुण्य स्नान करने सागरद्वीप पहुंचे शंकराचार्य ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ममता बनर्जी गंगासागर का विकास करना चाहती है तो यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि यह धार्मिक प्रशासन क्षेत्र पुरी पीठ का है और उनके शासन तंत्र के अधीन है इसलिए राज्य सरकार को सिर्फ केंद्र से संपर्क न करके दोनों तंत्रों से बातचीत करनी चाहिए थी। यहां विकास का स्वरूप क्या होगा, इस बाबत हम से भी संपर्क किया जाना चाहिए।
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गंगासागर तीर्थ का मकर संक्रांति पर विशेष महत्व

पश्चिम बंगाल स्थित गंगासागर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहंुचकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है। यहां संक्रांति पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि 'सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार'।
गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से नामखाना की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। यहां से चामागुरी घाट तक नौकाएं जाती हैं और वहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर गंगासागर है।  सागर द्वीप पर साधुओं का निवास है और द्वीप 150 वर्गमील के लगभग है। यहां वामनखल नामक प्राचीन मंदिर भी है। इसी के निकट चंदनपीड़ी वन में जीर्ण मंदिर और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी मंदिर है। गंगासागर में एक मंदिर भी है, जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना भी की जाती है। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के  60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर में बह गया, उसकी मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा-अर्चना हेतु मिलती है। अब यहां एक अस्थायी मंदिर ही बना है। इस स्थान पर कुछ भाग चार वर्षों में एक बार ही बाहर आता है, शेष तीन वर्ष जलमग्न रहता है।
मान्यता है कि एक बार गंगासागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के समान फल मिलता है। गंगासागर में पांच दिनों तक मेला लगा रहता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई लाख श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है। उसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।

मकर संक्रान्ति पर दान का विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दिए दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
सूर्य उत्तरायण होते हैं

सामान्यत सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसी जिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। इस लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की जाती है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष जनवरी में ही पड़ता है।
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में जाकर मिल गयी थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए यही व्रत किया था। 
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टिप्पणियाँ

  1. गंगा सागर के मेले ने वाङ भंग आंदोलन मे महत्व पूर्ण भूमिका निभाई थी जिसे देश भुला नहीं सकता , ममता जैसों का क्या कहना उन्हे देश और हिन्दुत्व से क्या मतलब वे तो वोट केवल के सौदागर हैं

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