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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुख को भूलें, सुख को भूलने न दें : प्रधानमंत्री मोदी

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भारत का संविधान हमारे लोकतंत्र की आत्मा: ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी Quoteहमारा संविधान व्यापक, सभी के लिए समानता और सभी के प्रति संवेदनशीलता इसकी विशेषता: ‘मन की बात’ में पीएम मोदी Quoteसंविधान का मसौदा तैयार करते वक्त बाबा साहेब अंबेडकर ने समाज के हर वर्ग का कल्याण सुनिश्चित किया: प्रधानमंत्री #मनकीबात Quoteभारत 9 साल पहले 26/11 को मुंबई में हुए उस आतंकवादी हमले को कभी नहीं भूलेगा जिसने देश को हिलाकर रख दिया था: प्रधानमंत्री मोदी #मनकीबात Quoteआतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इससे न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को खतरा है। विश्व को इस खतरे से लड़ने के लिए एकजुट होने की जरुरत: पीएम मोदी #मनकीबात Quoteभारत भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, गुरु नानक, और महात्मा गांधी की भूमि जिसने हमेशा से विश्व भर में अहिंसा का संदेश प्रसारित किया है: प्रधानमंत्री Quoteहमारी नदियां और समुद्र हमारे देश के लिए आर्थिक और रणनीतिक तौर पर महत्त्वपूर्ण: ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी Quoteज़रा सोचिए, क्या होगा अगर विश्व में कहीं भी उपजाऊ मिट्टी नहीं बचे? मिट्टी नहीं होगी तो न कोई

मारवाड़ का रक्षक वीर दुर्गादास राठौड़ : जोधपुर

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मारवाड़ का रक्षक वीर दुर्गादास राठौड़ : जोधपुर ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण लेख :- अपनी जन्मभूमि मारवाड़ को मुक्त कराने वाले वीर दुर्गादास राठौड़ का आज 22 नवंबर को निर्वाण दिवस है। उनका जन्म जन्म 13 अगस्त, 1638 को ग्राम सालवा में हुआ था। उनके पिता जोधपुर राज्य के दीवान श्री आसकरण तथा माता नेतकँवर थीं। आसकरण की अन्य पत्नियाँ नेतकँवर से जलती थीं। अतः मजबूर होकर आसकरण ने उसे सालवा के पास लूणवा गाँव में रखवा दिया। छत्रपति शिवाजी की तरह दुर्गादास का लालन-पालन उनकी माता ने ही किया। उन्होंने दुर्गादास में वीरता के साथ-साथ देश और धर्म पर मर-मिटने के संस्कार डाले। आसकरण जी उज्जैन की लड़ाई में धोखे से मारे गये। उस समय दुर्गादास केवल पंद्रह वर्ष के थे पर ऐसे होनहार थे कि मारवाड़ के तत्कालीन राजा जसवन्त सिंह (प्रथम) अपने बड़े बेटे पृथ्वीसिंह की तरह इन्हें भी प्यार करने लगे। एक बार महाराज के एक मुँह लगे दरबारी राईके ने कुछ उद्दण्डता की। दुर्गादास से सहा नहीं गया। उसने सबके सामने राईके को कठोर दण्ड दिया। इससे प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें निजी सेवा में रख लिया और अपने साथ अभियानों में ले जाने लगे। एक

चित्तौड़ का पहला जौहर, महारानी पद्मिनी : 26 अगस्त,1303

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महारानी पदमिनी और जौहर चित्तौड़ का पहला जौहर : 26 अगस्त,1303 जौहर की गाथाओं से भरे पृष्ठ भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। ऐसे अवसर एक नहीं, कई बार आये हैं, जब हिन्दू वीरांगनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए ‘जय हर-जय हर’ कहते हुए हजारों की संख्या में सामूहिक अग्नि प्रवेश किया था। यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया। जौहर की गाथाओं में सर्वाधिक चर्चित प्रसंग चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने 26 अगस्त, 1303 को 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था। पद्मिनी का मूल नाम पद्मावती था। वह सिंहलद्वीप के राजा रतनसेन की पुत्री थी। एक बार चित्तौड़ के चित्रकार चेतन राघव ने सिंहलद्वीप से लौटकर राजा रतनसिंह को उसका एक सुंदर चित्र बनाकर दिया। इससे प्रेरित होकर राजा रतनसिंह सिंहलद्वीप गया और वहां स्वयंवर में विजयी होकर उसे अपनी पत्नी बनाकर ले आया। इस प्रकार पद्मिनी चित्तौड़ की रानी बन गयी। पद्मिनी की सुंदरता की ख्याति अलाउद्दीन खिलजी ने भी सुनी थी। वह उसे किसी भी तरह अपने हरम में डालना चाहता था। उसने इसके लिए चित्तौड़ के राजा के पास धमकी भरा संदेश भेजा; पर राव रतन